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________________ परिवर्तन १४३ ध्यान कब फलित होता है? जब आदमी केवल जानता है, केवल ज्ञाता होता है, उसके लिए न कुछ प्रिय होता है और न कुछ अप्रिय होता है । न कुछ सुन्दर होता है और न कुछ असुन्दर होता है । न कुछ सुखद होता है और न कुछ असुखद होता है । घटना-घटना होती है , पर्याय पर्याय होता है और ज्ञान ज्ञान होता है। ज्ञेय का पर्याय ज्ञान नहीं होता और ज्ञान का स्वभाव ज्ञेय नहीं होता । ये दोनों भिन्न होते हैं। एक है ज्ञेय और एक है ज्ञान । किन्तु हमारी आशंकाओ के कारण ज्ञान का पर्याय अपना नहीं रहा, ज्ञान ज्ञेय के साथ बह गया। जैसा ज्ञेय सामने आया वैसा ही ज्ञान बन गया। ___साधना का सूत्र है-इस अवस्था को बदल देना । केवल ज्ञान के पर्याय को ज्ञान के पर्याय में रहने देना और ज्ञेय के पर्याय को ज्ञेय के पर्याय में रहने देना। दोनों का परस्पर स्पर्श न होने देना। केवल इतना-सा करना है। इतना-सा परिवर्तन हो कि ज्ञान, ज्ञान बना रहे और ज्ञेय ज्ञेय बना रहे, घटना घटना रहे और ज्ञाता ज्ञाता रहे । इतना होने पर सब कुछ हो जाता है । कुछ दूसरा करने की जरूरत नहीं रहती। जिस दिन यह बिन्दु जाग जाए फिर दो घण्टा ध्यान करने की आवश्यकता नहीं है। जब यह घटित हो गया कि आप घटना को जानते हैं भोगते नहीं तो ध्यान अपने आप फलित हो जाता है। फिर आप सोते हैं तो ध्यान होता है, चलते हैं तो ध्यान होता है, खाते हैं तो ध्यान होता है, बोलते हैं तो ध्यान होता है। मौन की कोई आवश्यकता नहीं है । बस, मौन तो इतना भर रह जाता है कि निरन्तर न बोला जाए, ध्यान अपने आप जीवन में घटित हो जाता है। हमारा मूल स्वभाव है—जानना, देखना। यह एक दिन में ही घटित नहीं हो जाता, ऐसा सम्भव नहीं है। असंभव को असंभव नहीं मानना चाहिए। जो चीज एक दिन में संभव नहीं है, उसके लिए एक दिन में ही आतुरता बढ़ा देना उचित नहीं है। लोग मानते हैं कि एल० एस० डी० से सब कुछ घटित हो जाता है। यह झूठी कल्पना है। झूठे आश्वासन में न रहें। घटना में मत बहो जब हमारी जागरूकता का विकास होगा, भावक्रिया का विकास होगा तब भोगने की बात छूटेगी। भावक्रिया साधना का महत्त्वपूर्ण सूत्र है। हम वर्तमान में रहें । वर्तमान के पर्याय को जानते रहें। अतीत और भविष्य के पर्यायों में अधिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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