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________________ परिवर्तन १४१ देखो। भोगो मत । प्रतिक्रिया मत करो। साधना का रहस्य है—जानना, प्रतिक्रिया न करना, घटना को न भोगना । जब आदमी घटना भोगने लगता है तब दुःखी बनता है। जब वह केवल जानता है तब कभी दुःखी नहीं बनता। ध्यान का परम सूत्र ___ धर्म का और ध्यान का यही परम सूत्र है-वेदना को जानो, भोगो मत । शरीर में पीड़ा है । उसे जानो, भोगो मत । जानने वाला बीमारी को कम कर देता है और भोगने वाला उसे बढ़ा देता है। कहीं दर्द है, उसे आप जानें, देखें वह दर्द कम होता जाएगा। भोगने लगेंगे तो वह बढ़ जाएगा। जो लोग जानते हैं, देखते हैं, वे बीमारी को मेहमान मानते हैं। आज आया है, बेचारा चला जाएगा। जितने दिन रहना चाहे, रहने दो, क्या अन्तर आता है ? मेहमान मेहमान होता है, स्थायी सदस्य नहीं होता। वह आता है और चला जाता है । जब आदमी बीमारी को भोगने लग जाता है, तब वह अधीर हो जाता है और उसको मिटाने के लिए अनेक प्रकार के विषों का प्रयोग करता है । वह चाहता है कि क्षण भर में वह मिट जाए। वेदना का भय होता है । वह भय सारे शरीर में असंतुलन पैदा कर देता है। जितना भय होगा, वेदना को भी उसी तीव्रता से भोगना पड़ेगा। दुःख का जितना अनुभव होगा, संवेदन जितना तीव्र होगा, हमारे शरीर-तंत्र की सारी क्रियाएं उतनी ही असंतुलित हो जाएंगी। नेपोलियन वाटरल का युद्ध हार गया था। क्यों? यह एक रहस्यपर्ण बात है। डॉक्टरों ने नेपोलियन का परीक्षण किया और रिपोर्ट में लिखा कि नेपोलियन की पिच्यूटरी ग्लैण्ड विकृत हो गई थी, इसलिए वह सही निर्णय नहीं ले सका। - भय अधैर्य को उत्पन्न करता है । क्रोध से ग्रन्थियों का तंत्र असंतुलित हो जाता है। उसको बहुत अधिक काम करना पड़ता है। उसका सहज, स्वाभाविक काम छूट जाता है। यह हानिकारक होता है। निर्णय लेना पिच्यूटरी ग्रन्थि का कार्य है। जब उस पर अधिक दबाव पड़ता है, तब वह थक जाती है और गलत निर्णय लेने लग जाती है । एक नेपोलियन नहीं, न जाने कितने नेपोलियन वाटरलू लड़ाईयां हार गए हैं, हार जाते हैं। महायुद्ध करने वाले, लड़ाईयां लड़ने वाले, समाज में संघर्ष और विग्रह करने वाले ही लोग होते हैं जिनका ग्रन्थि-तंत्र असंतुलित हो जाता है। वैसे लोग अपने भीतर आवेगों और आवेशों के कारण अपनी ग्रन्थियों को इतना परेशान कर देते हैं कि वे ग्रन्थियां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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