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________________ परिवर्तन १३५ पदार्थ दूसरे क्षण में बना रह सके इसके लिए परिवर्तन अपेक्षित होता है। यदि कोई भी पदार्थ क्षण में न बदले तब उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। पदार्थ क्षण-क्षण बदलता है। यह स्वाभाविक परिवर्तन है। यह स्वतःचालित .पर्याय है। यह पदार्थ का स्वतः चालित नाड़ी-संस्थान है । दूसरा है ऐच्छिक पर्याय, निमित्तों से होने वाला पर्याय। परिवर्तन का हेतु-ध्यान ___ ध्यान की साधना परिवर्तन की साधना है, बदलने की साधना है। ध्यान करने वाला साधक बदलने के लिए आता है। अगर बदलने कि बात न हो तो ध्यान के प्रति इतना आकर्षण नहीं होता। आदमी बदलना चाहता है। कल ही एक भाई ने कहा-मुझे क्रोध बहुत आता है । मैं बदलना चाहता हूं। मेरे मित्र ने कहा-तम ध्यान साधना में चले जाओ, बदलने लग जाओगे। इसीलिए ध्यान साधना में बिना निमन्त्रण ही सैकड़ों लोग आते है। आदमी में बदलने की मनोवृत्ति होती है। कोई भी एक रूप रहना नहीं चाहता, बदलना चाहता है। कोई भी बच्चे के रूप में रहना नहीं चाहता, युवक बनना चाहता है । युवक भी सदा युवक नहीं रहता, बढ़ा होता है। जैसे यौवन का अपना स्वाद है वैसे ही बुढ़ापे का अपना मजा है,स्वाद है । जिस व्यक्ति ने बुढ़ापे का अनुभव नहीं किया, बुढ़ापे के सुख का अनुभव नहीं किया, वह नहीं जान सकता, बुढ़ापे में क्या स्वाद है। यौवन में जो हलचल सताती है,जो समस्याएं परितप्त करती है, अपरिपक्वता के कारण जो कठिनाइयां आती हैं, वे सब बुढ़ापे की सीमा में प्रवेश करते ही समाप्त हो जाती हैं। वह तब जान पाता है कि बुढ़ापे का सुख क्या हैं? आनन्द क्या हैं? सुख न बचपन में है, न यौवन में है और न बुढ़ापे में है। यदि सुख की चाबी हस्तगत हो जाए तो बचपन में बहुत सुख है, जवानी में भी बहुत सुख है और बुढ़ापे में भी बहुत सुख है । जो बुढ़ापे तक नहीं पहुंचा, वह नहीं जान पाएगा कि बुढ़ापे में क्या सुख है ? बुढ़ापे तक हम भी नहीं पहुंचे हैं अब तक, परन्तु हम उसमें होने वाले सुख को जानते हैं। प्रत्येक व्यक्ति हर अवस्था के अनुभव में जा सकता है, उसमें से गुजर सकता है। दुःख यथार्थ भी अयथार्थ भी हम परिवर्तन के सिद्धांत को समझ कर चलें। प्रत्येक आदमी परिवर्तन चाहता है। ध्यान की समूची प्रक्रिया बदलने की प्रक्रिया है। मैंने देखा-जो आदमी दसों वर्षों तक नहीं बदल पाये, वे ध्यान शिविरों में बदल गए। आदमी का स्वभाव बदलता है। आदमी की आदतें बदलती हैं। आदमी के जीवन में अनेक परेशानियां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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