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________________ १३६ अनेकान्त है तीसरा नेत्र होती हैं। क्रोध की और अहंकार की परेशानी है, भय और माया की परेशानी है। यदि हम वस्तुस्थिति में जाएं, सच्चाई के निकट जाएं तो पता चलेगा कि पच्चीस प्रतिशत दुःख यथार्थ होता है और शेष पच्चहत्तर प्रतिशत दुःख हमारे अज्ञान, हमारी धारणाओं, मान्यताओं और कल्पनाओं के कारण होता है । उसे हम भोगते हैं। यदि हम सत्य के निकट जाएं या सत्य की सीमा में प्रवेश करें तो पच्चहत्तर प्रतिशत दुःख अपने आप समाप्त हो जाता है। एक क्रोधी आदमी स्वयं दुःख पाता है। वह स्वयं ही दुःखी नहीं होता, सारे परिवार को दुःखी बना देता है। क्रोध है आग . ___वास्तव में प्रत्येक आदमी बदलना चाहता है । क्रोधी आदमी स्वयं चाहे या न चाहे, परिवार वाले अवश्य चाहते है कि वह बदल जाएं, उसका क्रोध छूट जाए, क्योंकि वह सबको दुःख देता है । वह स्वयं दुःख को भोगता है। और दूसरों को भी दुःखी बनाता है। आग स्वयं जलती है और दूसरों को जलाती है। आग पर । कुछ भी रखो, वह उबलने लग जाता है । आग जलती है, सारे ईंधन को जला देती है। शेष केवल राख बचती है । शिविरों में पचास प्रतिशत साधक स्वयं की प्रेरणा से आते हैं और पचास प्रतिशत आसपास की प्रेरणाओं से आते हैं। लाभ उठाए हए लोग प्रेरणा देते हुए कहते हैं—जाओ, बदलो । इसी प्रेरणा से प्रेरित होकर अनेक साधक आता हैं और बदलते हैं। कोई व्यक्ति बदलना नहीं चाहता पर परिवार वाले चाहते हैं कि वह बदले । उसके मन में अभी बदलने की जिज्ञासा पैदा नहीं हुई, पर लोग समझते हैं कि वह दुःख देता है, स्वभाव से चिड़चिड़ा है। अच्छा है वह शिविर में रहे और कुछ बदले। यौगिक पर्याय बदले जा सकते हैं __ अनेकान्त की यह बात समझ में आ जानी चाहिए कि जितने यौगिक पर्याय हैं, जितने सम्पर्कों और सम्बन्धों से पर्याय बने हैं, जितने वैचारिक और नैमित्तिक अवस्थाएं हैं, वे बदल सकती हैं, उनमें परिवर्तन किया जा सकता हैं। वे हमारे वशवर्ती पर्याय हैं । हम जब उन्हें बदलना चाहें तब बदल सकते हैं, जब बदलना न. चाहें तब नहीं बदल सकते । यह इच्छाचालित नाड़ी-संस्थान की तरह है। जैसे ही हमने बदलना चाहा, हम बदल जाते हैं। हमारा शरीर बदल जाता है। चित्त और मन बदल जाता है। हमारी लेश्या बदल जाती है। हमारे अध्यवसाय बदल जाते हैं। हमारा आभामंडल बदल जाता। हमारे शरीर की विद्युत बदल जाती है। शरीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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