SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२६ अनेकान्त है तीसरा नेत्र नहीं है। यह पहले क्षण में होने वाली घटना है । जीवन के पहले क्षण के साथ-साथ . मौत की घटना भी घटित होती है। जिसकी प्रथम क्षण में मृत्यु नहीं होती, वह अमर बन जाता है, वह कभी नहीं मरता। पहले क्षण में जो नहीं मरता, दूसरा क्षण उसे नहीं मार सकता। पहले क्षण में जो उत्पन्न नहीं होता, दूसरा क्षण उसे कभी पैदा नहीं करता । प्रत्येक पदार्थ प्रत्येक क्षण उत्पाद का अनुभव करता है। उत्पाद और विनाश-दोनों साथ-साथ होते हैं। निन्दा और प्रशंसा-दोनों साथ-साथ चलते हैं। ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं मिलेगा जिसकी केवल निन्दा हुई हो और प्रशंसा न हुई हो या केवल प्रशंसा हुई हो और निन्दा न हुई हो। दोनों साथ-साथ होते हैं। सन्तुलन बराबर चलता है। लाभ-अलाभ, निन्दा-प्रशंसा, जीवन-मरण-ये सब साथ चलते हैं। समस्या तब उभरती है जब हम इनके साथ-साथ नहीं चलते । यदि मनुष्य इनके साथ चलना सीख जाए तो पूरा अध्यात्मवादी बन जाए, पूरी अनेकान्त की दृष्टि जागं जाए। ऐसा होता है तो उसकी समस्याएं समाहित हो जाती हैं। परन्तु आदमी बड़ा विचित्र है । वह इनके साथ चलना नहीं चाहता। इनसे हटकर चलना चाहता है । वह चाहता है, लाभ हो परन्तु अलाभ कभी न हो, सुख हो पर दःख न हो; जिन्दा रहं, मरण कभी न घटे; प्रशंसा हो, निन्दा कभी न हो। वह सार्वभौम नियम को भुला देता है। द्वन्द्व की दुनियां में अकेला कुछ भी नहीं रहता। सब युगल चलता है। आदमी नासमझ है। वह अनेकान्त का अतिक्रमण कर एकान्त चाहता है। जब जगत् का एक नियम है, प्रकृति का नियम एक है, उसका अतिक्रमण कैसे हो सकता है ? फिर भी आदमी एकांगी दृष्टिकोण को अपना कर एक को चाहता है, दूसरे को नहीं चाहता। लाभ चाहता है, अलाभ नहीं चाहता । प्रशंसा चाहता है, निन्दा नहीं चाहता। वह इस प्रकार समस्याओं के भार से दबता चला जाता है और एक दिन टूट जाता है। समता, संयम और संतुलन __ अनेकान्त का सूत्र है-समता और सन्तुलन । लाभ इष्ट है तो अलाभ के लिए भी तैयार रहो । प्रशंसा इष्ट है तो निन्दा के लिए भी तैयार रहो। चाहो तो दोनों को चाहो और न चाहो तो दोनों को मत चाहो । एक को चाहना निरी मूर्खता है । जीवन को चाहो तो मृत्यु को भी चाहो । सुख को चाहो तो दुःख को भी चाहो । यदि दोनों को न चाहो तो समता रखो। इसी अनेकान्त के आधार पर जीवन बिता सकोगेअनेकान्त तब तुम्हारे जीवन का क्षण होगा। वहां कोई गड़बड़ी नहीं होगी, शान्ति के साथ तुम जी सकोगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy