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________________ सन्तुलन १२५ लज्जावश में कपड़े पहनकर स्नान कर रही हूं।" । जब ज्ञान या प्रज्ञा का जागरण नहीं होता तब सिद्धांत का दुरुपयोग भी हो जाता है। यदि सन्तुलन हो तो ऐसी स्थिति नहीं बनती । संतुलन से सापेक्षदृष्टि का विकास होता है, एकांगीदृष्टि नहीं पनपती । तराजू के दोनों पलड़े बराबर रहते हैं, न नीचे न ऊपर। अनेकान्तदृष्टि वाला व्यक्ति किसी भी बात को एकांगी मानकर उस महिला की भांति सिद्धान्त तो तोड़-मरोड़कर नहीं जानता, नहीं देखता। वह अपने व्यवहार को विघटित नहीं करता, किन्तु नारद की भांति उसका उपयोग करता है और उसकी सार्थकता प्रमाणित करता है । यह सन्तुलन से ही संभव है। अनेकान्त की अनुपम देन अनेकान्त ने विश्व के नियमों की व्याख्या में संतुलन का सिद्धान्त प्रस्तुत किया है। आचार-विचार के क्षेत्र में भी अनेकान्त की अनुपम देन हैं । संयम और समता भी उसी के फलित हैं। यदि अनेकान्त की दृष्टि न हो तो संयम की कोई जरूरत नहीं है। यदि अनेकान्त की दृष्टि नहीं हो तो समता की कोई आवश्यकता नहीं है। हम अनेकान्त के द्वारा इस सच्चाई को स्वीकार करते हैं कि विरोधी युगलों का अस्तित्व एक सच्चाई है । सब ससीम हैं, असीम कोई नहीं है इस दुनिया में । समता की जरूरत होती है। लाभ और अलाभ—दोनों को स्वीकार करते हैं । यह जीवन का शाश्वत नियम है कि लाभ होगा तो अलाभ भी होगा, अलाभ होगा तो लाभ भी होगा। दोनों में कोई दूरी नहीं है। दोनों परस्पर जुड़े हुए हैं। साथ-साथ चलते हैं। लाभ के साथ अलाभ भी जुड़ा रहता है और अलाभ के साथ लाभ जुड़ा रहता है । दोनों एक हैं। केवल घटना या काल का अन्तर है, केवल देश का अन्तर है। सुख और दुःख में कोई दूरी नहीं है। मृत्यु और जीवन में कोई दूरी नहीं है। दोनों साथ-साथ चलते हैं। कभी सुख का अनुभव होता है, कभी दुःख का अनुभव होता है। कभी सुख उभरकर जीवन को भर देता है और कभी दुःख उभरकर जीवन को विषाक्त बना देता है । रहट की घड़ियों में दूरी कहां है । उसकी एक माला है । घड़ियां पानी भर कर आती हैं। 'खाली होकर चली जाती हैं।' पानी से भरी और पानी से खाली घड़ियां आती जाती हैं। दोनों साथ-साथ चलती हैं। सुख-दुःख साथ-साथ चल रहे हैं । जीवन और मरण-दोनों साथ-साथ चलते हैं। एक भी क्षण ऐसा नहीं होता जो केवल जीवन का क्षण हो या केवल मृत्यु का क्षण हो । जीवन का पहला क्षण ही मृत्यु का पहला क्षण होता है । मृत्यु ७०-८० वर्ष बाद आने वाली घटना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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