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________________ १२४ अनेकान्त है तीसरा नेत्र उपाध्याय का पुत्र एकान्त में गया। सोचा, खुले में तो कोई पंछी देख सकता है। वह गफा में गया। मुर्गे की गर्दन तोड़कर घर आ गया। नारद गया। बहुत दूर जंगल में । अत्यन्त निर्जन स्थान में पहुंचा। गहरी गुफा में गया। सघन अंधकार था। सोचा, कोई नहीं देखता यहां । ज्योंही उसने मुर्गे की गर्दन पर हाथ रखा, उसने सोचा, अरे, मेरी आत्मा तो देख रही है। गुरु का आदेश है कि गर्दन वहां तोड़ना जहां कोई न देखे। यहां दूसरा कोई नहीं है। पर मैं देख रहा हूं। मेरी आत्मा तो देख रही है। परमात्मा देख रहा है । मुक्त आत्मा तो देख रहा है। वह मुर्गे को लेकर घर आ गया। दूसरे दिन तीनों विद्यार्थी उपाध्याय के समक्ष उपस्थित हुए। उपाध्याय ने कहा-आटे का मुर्गा था, अचेतन था, चेतन नहीं था। तीनों ने मार डाला? राजकुमार बोला-“यह रही गर्दन और यह रहा धड़ । मैंने जंगल में जाकर इसकी गर्दन मरोड़ी है।" उपाध्याय का पुत्र बोला—“मैंने एकान्त और निर्जन गुफा में जाकर मारा है। वहां पंछी भी नहीं देख पाए । आपकी आज्ञा का अक्षरश: पालन किया है ।” नारद बोला-“गुरुदेव ! मैं आपकी आज्ञा का पालन नहीं कर सका। मैं गहन जंगल में गया। कोसों दूर चला गया। वहां न आदमी थे, न पशु-पक्षी । कोई नहीं था। मैं सघन गुफा में गया। वहां केवल अंधेरा था। मैंने वहां मुर्गे को मारना चाहा। पर तत्काल मुझे ध्यान आया कि कोई नहीं देखता पर स्वयं की आत्मा तो देखती है, परमात्मा तो देखता है। वह सर्वदर्शी हैं। ऐसा स्थान कहां मिल सकता है, जहां परमात्मा न देखे। मैं लाचार हूं। घर लौट आया।" उपाध्याय ने नारद की प्रशंसा की। जिस व्यक्ति में यह प्रज्ञा जाग जाती है कि आत्मा सर्वत्र देखती है, परमात्मा सर्वत्र देखता है, वह ज्ञानी होता है। वह इस प्रज्ञा से अहिंसा का विकास कर लेता है। अज्ञानी पुरुष इसी का दुरुपयोग कर लेता है। जब सन्तुलन नहीं होता तब दुरुपयोग होता है । उपयोग और दुरुपयोग—दोनों होते हैं। सिद्धान्त का दुरुपयोग ___ एक महिला कपड़े पहनकर स्नान करती थी। एक बहन ने कहा-बहन ! कपड़े पहनकर स्नान कर रही हो? कपड़े गीले हो जाएंगे। ऐसा नहीं करना चाहिए। एकान्त में कपड़े खोलकर स्नान किया करो। उसने कहा--"अरे ! तुम नहीं जानतीं। शास्त्रों का कथन है कि परमात्मा सर्वदर्शी है। वह सबको देखता है, सर्वत्र देखता है। उसके सामने कपड़े कैसे खोलूं? उसके सामने नंगे रूप में कैसे आऊँ ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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