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________________ सापेक्ष-मूल्यांकन ११३ ___ मेरे मन में भी एक प्रश्न उभरा-ऋजु कौन होता है ? ऋजु वह होता है जिसे अनेकान्त की दृष्टि उपलब्ध है । एकान्तदृष्टि वाला कभी ऋजु नहीं होता। वह आग्रही होता है। वह दूसरों की दुर्बलताओं को देखता है, परिस्थिति को मूल्य देता है और अपने आस-पास में होने वाली सारी कमजोरियों को दूसरों के सिर लाद देता है। वह आदमी कुटिल होता है। उसमें अनेकान्त की दृष्टि नहीं होती। . हम ऋजु बनें, अनेकान्त की दृष्टि स्वीकार करें। सापेक्षता का मूल्यांकन करें। भाग्य, काल और पुरुषार्थ-ये तीन तत्त्व हैं। अनेकान्तदृष्टि में न भाग्य को अधिक मूल्य दिया जाता है और न काल और पुरुषार्थ को अधिक मूल्य दिया जाता है । जिसका जितना मूल्य होता है, उसका उतना ही मूल्य आंका जाता है । ध्यान-सामग्री का कितना मूल्य ? ध्यान को भी अतिरिक्त मूल्य नहीं दिया जाता। ध्यान-सामग्री का भी मूल्य है। वह न हो तो ध्यान नहीं हो सकता। यदि ध्यान की सामग्री नहीं है तो ध्यान को मूल्य देने से क्या होगा? जिसने तपस्या करना, आहार का संयम करना, कायोत्सर्ग तथा आसन करना, इन्द्रिय-संयम तथा प्रायश्चित के द्वारा चित्त को निर्मल करना, अतीत की मानसिक ग्रन्थियों को खोलना नहीं सीखा वह ध्यान क्या करेगा? जिसमें विनम्रता नहीं आई, समर्पण का भाव नहीं आया, सहयोग का भाव नहीं पनपा, स्वाध्याय के प्रति अभीप्सा नहीं जागी, ज्ञान के दरवाजे नहीं खुले, विसर्जन करना नहीं सीखा, अहंकार, ममकार और शरीर का विसर्जन करना नहीं सीखा, मन और वाणी का विसर्जन करना नही सीखा और केवल ध्यान को ही पकड़कर बैठ गया तो वह एकान्तवादी हो जाता है। ध्यान भी एकांत की कारा में फंस गया । हमारी ध्यान की दृष्टि भी अनेकांत की दृष्टि होनी चाहिये । अनेकांत के बिना ध्यान को नहीं पकड़ा जा सकता। अनेकान्त की चर्चा ध्यान के बिना नहीं हो सकती। ध्यान और अनेकान्त में तादात्म्य है। भगवान् महावीर ने अनेकान्त दर्शन दिया, पर वह किसी शास्त्र को पढ़कर नहीं दिया। अपने अनुभव के आधार पर यह प्रतिपादित किया है। जिसमें अनुभव का विकास होता है, उसको पढ़ने की जरूरत नहीं होती और संभव है जो ज्यादा पढ़ता है, उसमें अनुभव का विकास नहीं होता। पढ़ना खतरनाक होता है। अनुभव की चेतना जैसे-जैसे जागती है वैसे-वैसे पढ़ना गौण होता चला जाता है। जैसे-जैसे अनुभव की चेतना सो जाती है, वैसे-वैसे पढ़ने की चेतना जाग जाती है। विश्व में जितने महापुरुष हुए हैं, वे सब कम से कम पढ़े-लिखे लोग थे। या तो उन्हें पढ़ने का मौका नहीं मिला या वे स्कूल से निकाल दिये गये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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