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________________ अनेकान्त है तीसरा नेत्र दोनों एक-दूसरे को दोषी बताने लगे । लड़ाई प्रारम्भ हो गई। जहां दूसरे को दोषी माना जाता है वहां लड़ाई को रोका नहीं जा सकता । लड़ाई अवश्य होती है । वे दोनों लड़ने में तन्मय थे । इधर से कुत्तों ने दूध और दही के बर्तनों को साफ कर दिया। चीनी और दूसरी चीजें जमीन पर गिर कर नष्ट हो गई। बिना बेचे ही गाड़ी खाली हो गई । माल सारा चुक गया । जब-जब आदमी अपने आपको नहीं देखता, अपने को दोषी न मानकर दूसरों पर दोषारोपण करता है तब संघर्ष होता है, संघर्ष की चिंगारियां उछलती हैं । संघर्ष को रोका नहीं जा सकता । इस घटना का यह पक्ष भी हो सकता था। घी का बर्तन फूट गया । अहीर कहता है- अरे, मेरी असावधानी से बर्तन छूट गया और जमीन पर गिर कर फूट गया । अहीरन कहती है-नहीं, नहीं गलती मेरी है । तुमने तो घी को बर्तन मेरे हाथों में थमाया था, पर मेरी असावधानी के कारण बर्तन छू गया। तुम्हारा कोई दोष नहीं है। दोनों ने दोष को अपने पर ले लिया । बात बढ़ी नहीं, वहीं समाप्त हो गई। एक ही प्रकार की घटना। उसके दो दृश्य हैं। एक में व्यक्ति दूसरे को ही देखता है । दूसरे में व्यक्ति स्वयं को देखता है। जहां आदमी केवल दूसरे को ही देखता है वहां समस्याएं पैदा होती हैं। जहां आदमी अपने आपको देखता है वहां समस्याओं का समाधान सरल हो जाता 1 बीमार होने वाला व्यक्ति कभी यह नहीं सोचता है कि उसकी बीमारी की उत्पत्ति में उसका अपना प्रमाद काम कर रहा है । वह बीमारी का कारण परिस्थिति को मानता है । वह वैद्य के सामने भी सही परिस्थिति बताने में सकुचाता है । वह यह कहना नहीं चाहता कि खाने में गड़बड़ी के कारण यह स्थिति बनी है । वह अन्यान्य बातें करता है, मूल कारण नहीं बताता । वैद्य मूल कारण को नहीं पकड़ पाता । अनुमान से औषधि देता है, जो कारगर नहीं होती । जो ११२ ऋजु वह शुद्ध I अपनी दुर्बलता को स्वीकार करने का साहस तभी आता है, जब व्यक्ति में अनेकान्तदृष्टि का उन्नयन होता है । भगवान् महावीर ने कहा- धम्मो सुद्धस्स चिट्ठईधर्म शुद्ध आत्मा में ठहरता है। प्रश्न पूछा गया - शुद्ध कौन ? भगवान् ने कहा- जो ऋजु है, वह शुद्ध है । ईसामसीह ने कहा - धार्मिक व्यक्ति बच्चे जैसा होता है । एक ही बात है । ऋजु होना और बच्चे जैसा होना - एक ही बात है । बच्चा कभी कुटिल नहीं होता । कुटिल कभी धार्मिक नहीं होता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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