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________________ १११ सापेक्ष-मूल्यांकन गया है। वह कभी दूध अधिक पी लेता है तो कभी फल अधिक खा लेता है। कभी मिठाई अधिक खा लेता है तो कभी रोटी अधिक खा लेता है । जीभ को सब स्वादिष्ट लगता है। शरीर को उससे लाभ है या नहीं, इसका विचार भी होना चाहिए। दूध जीभ को स्वादिष्ट लगता है, पर उसका असर आंख पर भी होता है। दोनों की सापेक्षता है। जीभ को निरपेक्ष मूल्य या आंखों को निरपेक्ष मूल्य नहीं दिया जा सकता। दोनों का सापेक्ष मूल्य है । जीभ की और आंत की सापेक्षता है । जीभ की सलाह मानकर आदमी अधिक खा लेता है, पर वह आंतों की सलाह नहीं लेता। यह निरपेक्षता खतरनाक होती है। मनुष्य स्वाद-तन्तुओं की सलाह मानता है, पर शंक्ति-तंतुओं की बात नहीं मानता। इस प्रकार उसका समूचां जीवन निरपेक्ष हो गया है। इससे आग्रह पनपा है। आग्रह : अनाग्रह सत्य प्राप्त होता है अनाग्रह के द्वारा । सत्य का आधार है-अनाग्रह और असत्य का आधार है-आग्रह । आग्रह पनपता है पर-सापेक्षता के द्वारा। आग्रह पनपता है दूसरे के प्रति अतिरिक्त मूल्य की दृष्टि हो जाने के कारण। आग्रह के अनेक प्रकार हैं। साम्प्रदायिक आग्रह, पारिवारिक और सामाजिक आग्रह, जातीय और राष्ट्रीय आग्रह-ये सारे आग्रह हैं । इनका मूल कारण है-दूसरे के प्रति ध्यान देना, दूसरे की परिक्रमा करना। एक राष्ट्र अंधाधुंध शस्त्रों का निर्माण करता है। पूछने पर कहता है-यदि हम शस्त्रों का निर्माण न करें तो संतुलन बिगड़ जाएगा। इस संतुलन को बनाए रखने के लिए ही शस्त्रों का निर्माण करते हैं। हम युद्ध करने के लिए इनका निर्माण नहीं कर रहे हैं। यह चिन्तन भी दूसरों पर आधारित है। दूसरे क्या कर रहे हैं-इस पर आधारित है। यह आग्रह का एक कारण बनता है। दूसरे की गलती देखना, दूसरों पर दोषारोपण करना, यह इसलिए होता है कि व्यक्ति 'पर' की परिक्रमा कर रहा है। एक कथा है। एक अहीर अपनी पत्नी के साथ नगर में गया। बैलगाड़ी में माल भरा था। नगर में एक चौराहे पर गाड़ी खड़ी थी। माल उतारने लगा। अहीर ने घी का बर्तन उठाया और पत्नी के हाथ में थमाया। बर्तन नीचे गिरा और टूट गया। सारा घी जमीन पर दुल गया। अहीर तमतमाकर बोला-कितनी ना-समझ हो तुम ! कितना नुकसान कर डाला ! बर्तन को पकड़ा नहीं? वह बोली-गलती मेरी नहीं है, तुम्हारी है। तुमने बर्तन मेरे हाथ में थमाया ही नहीं। पहले ही उसे छोड़ दिया। मेरे सिर पर झूठा आरोप लगा रहे हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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