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________________ ११० अनेकान्त है तीसरा नेत्र संसार शिव से अलग नहीं है। महादेव ने निर्णय की भाषा में कहा—गणेश जीत गया और कार्तिकेय हार गया। जो व्यक्ति स्व की परिक्रमा करता है वह जीत जाता है। जो स्व की परिक्रमा नहीं करता, दूसरों पर भरोसा करता है, वह सदा हारा हुआ होता है। _ आकांक्षा व्यक्ति को चलाती है। आकांक्षा का पार वही व्यक्ति पा सकता है जो स्व की परिक्रमा करता है। पदार्थों की परिक्रमा करने वाला कभी आकांक्षा का पार नहीं पा सकता। आदमी की अनेक वासनाएं हैं, वृत्तियां और चाहें हैं, आवेश और आवेगजनित भावनाएं हैं। वे कभी पूरी नहीं हो सकी। आज तक का इतिहास बताता है कि कोई भी व्यक्ति अपनी सभी कामनाओं को पूरी नहीं कर सका। मरते समय उसे यही कहना पड़ा-मन की बात पूरी नहीं हुई, मन में ही रह गई । रावण ने यही कहा-सिकंदर और नेपोलियन ने भी यही कहा। सबने यही कहा-चाह अधूरी ही रह गई, पूरी नहीं हुई। यदि किसी ने कहा कि चाह पूरी हो गई, अधूरी नहीं रही तो वह उस व्यक्ति की बात हो सकती है जिसने अपनी परिक्रमा पूरी कर ली । स्व की परिक्रमा करने वाले किसी भी व्यक्ति ने नहीं कहा कि चाह पूरी नहीं हुई, अधूरी ही रह गई। उनकी चाह पूरी होती है जो स्व की परिक्रमा करते हैं। उनकी चाह पूरी नहीं होती जो दूसरों की परिक्रमा करते हैं, पर की परिक्रमा करते हैं। हमारी विवेक-चेतना जागे और हम सापेक्ष मूल्य को समझें। मूल्य है सबका पदार्थ का या पर का मूल्य नहीं है, ऐसा मैं नहीं कहता। परिस्थिति का मूल्य नहीं है, ऐसा भी मैं नहीं कहता । सबका अपना-अपना मूल्य है । पदार्थ का अपना मूल्य है । व्यवहार का अपना मूल्य है । स्थूल पर्याय, वर्तमान पर्याय का अपना मूल्य है। विकल्प का भी मूल्य है । स्मृति और चिन्तन का भी मूल्य है । वर्तमान का मूल्य है अतीत और भविष्य का भी मूल्य हैं। यदि यह कहा जाए कि इनका कोई मूल्य नहीं है तो सर्वथा असत्य कथन होगा। जहां ध्यान का मूल्य है वहां रोटी और खेती का भी मूल्य है । यदि खेती और रोटी न हो तो ध्यान का मूल्य भी समाप्त हो जाता है। रोटी होती है तो ध्यान चलता है। रोटी का अपना मूल्य है, तो ध्यान का भी अपना मूल्य है । ध्यान का अपना मूल्य है तो रोटी का भी अपना मूल्य है । कभी-कभी आदमी रोटी को ज्यादा मूल्य दे देता है । तब वह इतना खा लेता है कि जितना नहीं खाना चाहिए । मनुष्य खाने में भी निरपेक्ष होता जा रहा है । वह अनेकान्त को भूल . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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