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सापेक्ष-मूल्यांकन
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हो गया। इतना जघन्य प्रयत्न करने पर भी क्रोध नहीं आया। वह नीचे उतरा और संत के पैरों में गिर पड़ा। उसने गिड़गिड़ाते हए कहा-“मैंने जघन्य अपराध किया है। आप महान् हैं, क्षमा करें।" संत बोले-“तुमने कोई अपराध नहीं किया है । तुमने मेरा बड़ा उपकार किया है । तुम्हारे कारण ही मैं आज पुण्यभागी बना हूं। प्रतिदिन एक बार मां गोदावरी की गोद में जाता हूं। तुमने मुझे मां की गोद में जाने के बीस अवसर दिए। तुम्हारा मैं आभारी हूं।" परिस्थिति पर दोषारोपण
क्रोध उत्पन्न होने की भयंकर स्थिति एकनाथ के समक्ष थी। विकट परिस्थिति से वे गुजरे । पर क्रोध नहीं आया । क्यों, यह प्रश्न है । इसका समाधान है कि क्रोध उत्पन्न होने की परिस्थिति तो थी, किन्तु व्यक्ति में वह बीज विद्यमान नहीं था जो क्रोध को उभारता है। वह बीज दग्ध हो चका था। - दूसरे को देखने वाला केवल परिस्थिति को देखता है । वह उस बीज को नहीं देखता जिसे परिस्थिति प्रभावित करती है। ध्यान करने वाला व्यक्ति, अनेकान्त की दृष्टि को जानने वाला व्यक्ति परिस्थिति को पच्चीस प्रतिशत मूल्य देता है और पचहत्तर प्रतिशत मूल्य देता है उस बीज को जो परिस्थिति के कारण अंकुरित, पुष्पित, पल्लवित और फलित होता है । जिस व्यक्ति ने ध्यान का अभ्यास नहीं किया, जिसने अध्यात्म के मर्म को नहीं जाना, जिसने अध्यात्म से जागृत होने वाली अनेकान्त की दृष्टि का मर्म नहीं जाना वह अपनी दुर्बलताओं को परिस्थिति पर लाद देता है और अनुभव करता है कि मैं तो निर्दोष हूं, दोष सारा परिस्थिति का है। अस्तित्व और नास्तित्व : स्वगत, परगत नहीं
प्रत्येक व्यक्ति 'पर' या परिस्थिति पर सारा दोषारोपण कर छट्टी पा लेता है। अनेकान्त की व्याख्या करने वाले आचार्य ने भी ऐसी ही समस्या हमारे सामने उत्पन्न की है। उन्होंने अस्तित्व और नास्तित्व—दोनों को मान्यता दी। उन्होंने कहा- प्रत्येक तत्त्व का अपने द्रव्य की दृष्टि से अस्तित्व है, अपने क्षेत्र की दृष्टि से अस्तित्व है, अपने काल की दृष्टि से अस्तित्व है, अपने भाव की दृष्टि से अस्तित्व है। प्रत्येक तत्त्व का परद्रव्य की दृष्टि से नास्तित्व हैं, परक्षेत्र की दृष्टि से नास्तित्व है, परकाल की दृष्टि से नास्तित्व है, परभाव की दृष्टि से नास्तित्व है। इसका तात्पर्य है-स्वसत्ता की अपेक्षा अस्तित्व है, परसत्ता की अपेक्षा नास्तित्व है।
अध्यात्म की दृष्टि यहां कुछ गौण हो गई है । 'पर' से नास्तित्व क्यों माना जाए? सापेक्षता की दृष्टि से विचार करें तो अस्तित्व और नास्तित्व-दोनों स्वगत ।
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