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________________ १०६ अनेकान्त है तीसरा नेत्र होते हैं, वस्तुगत होते हैं । 'परद्रव्य' की उपेक्षा से नास्तित्व है, यह आवश्यक नहीं है। प्रत्येक पदार्थ का अस्तित्व व्यक्त पर्याय की अपेक्षा से है और नास्तित्व अव्यक्त पर्याय की अपेक्षा से है । प्रत्येक पदार्थ का अस्तित्व प्रगट पर्याय की अपेक्षा से है और नास्तित्व संभाव्य है, उनकी अपेक्षा से ही द्रव्य का नास्तित्व है। नेपोलियन बोनापार्ट कहता था-"मेरे शब्द-कोश में “असंभव" जैसा शब्द नहीं है।" यदि इसे अहंकारपूर्ण कथन माना जाए तो यह बहुत बड़ा अहंकार है और यदि इसे तत्त्वदृष्टि मानें तो यह महत्वपूर्ण तत्त्वदृष्टि है। अनेकान्त के रहस्य को समझने वाला व्यक्ति किसी भी बात को असंभव मानकर नहीं चलता। लोग कहते हैं-मन की चंचलता को मिटाना असंभव है । यह भ्रान्तभरी धारणा है। ध्यान के अभ्यास से मन समाप्त हो जाता है । __ पारा बहुत चंचल होता है। पर उसकी चंचलता को मिटाकर, उसकी गोली बांध दी जाती । यह भी बहुत संभव है। लोग मानते हैं—चलनी में पानी नहीं ठहरता, सारा नीचे आ गिरता है। पर चलनी में पानी को ठहराना भी अब असंभव नहीं रहा है। पानी को बर्फरूप में बदल दो। उसे चलनी में डालो। वह ठहर जाएगा। हम यदि एक ही दृष्टि से किसी बात को पकड़ लेते हैं, वहां कठिनाई होती है। चलनी में पानी नहीं भी ठहर सकता और ठहर भी सकता है। अवस्था का परिवर्तन चाहिए। अवस्था के परिवर्तन के साथ-साथ सारी असंभव बातें संभव हो जाती हैं। स्याद्वाद का विराट् दृष्टिकोण । स्याद्वाद ने विराट् दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। इसके आधार पर ज्ञान, विज्ञान और व्यक्तित्व की अनन्त संभावनाएं स्पष्ट नाचने लग जाती हैं। किसी भी बात को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। आज प्रतिदिन नए-नए आविष्कार हो रहे हैं। अनेकान्तवादी व्यक्ति को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वह जानता है, एक और अनेक-दोनों साथ-साथ चलते हैं। सत्य और असत्य-दोनों साथ-साथ चलते हैं। एक पर्याय सत्ता में होती है और दूसरी पर्याय असत्ता में हो सकती है। जो आज सत्ता में हैं, वह कल असत्ता में हो सकती है और जो असत्ता में है वह सत्ता में आ सकती है। व्यवहार की बात है, एक व्यक्ति सत्ता में आता है, दूसरा असत्ता में चला जाता है। दूसरा सत्ता में आता है, पहला असत्ता में चला जाता है। सत्ता के जगत् में यही क्रम है। किसने संभावना की थी कि वनस्पति का एक जीव मोक्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001373
Book TitleAnekanta hai Tisra Netra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Discourse
File Size8 MB
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