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पृ० १३४ की पं० ७ से १४ में गधे का पूछ पकडनेवाले का दृष्टान्त माया है। इस से जाना जाता है कि आज के लौकिक व्यवहार में आनेवाले अनेक दृष्टान्त प्राचीन परम्परा से आये हुए है
पृ० १८४ पं० २० में चीन देश का चीनदीव के नाम से उल्लेख हुआ। पृ० १८४ पं० १३ में कडाहदीव ' का भी उल्लेख मिलता है।
ऋणस्वीकार
प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन में उपयुक्त प्रतिमों का उपयोग करने के लिये जिन-जिन ज्ञान भण्डारों के अधिकारीव्यवस्थापक महानुभावों ने स्व० सम्पादकजी को सम्पूर्ण अनुकूलता करवा करके ज्ञानप्रकाशन कार्य में सहयोग प्रदान किया है उस के लिये वे धन्यवाद के पात्र है। उनकी यह ज्ञानभक्ति प्रशस्य एवं अनुमोदनीय है।
प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन-संशोधन कार्य में मैं स्व० सम्पादकजी का सहायक था । प्रस्तुत ग्रन्थ के सातो परिशिष्टो एवं विषयानुक्रम को मैंने ही तैयार किया है। इस बात को ध्यान में रखकर प्राकृत ग्रन्थ परिषद के मानद मंत्री पं० श्री दलसुखभाई मालवणियाजी ने मुझे इस ग्रन्थ की प्रस्तावना लिखने की अनुमति दौ । एतदर्थ मैं उनके प्रति हादिक आभार व्यक्त करता है।
प्रस्तुत सम्पादन कार्य में जहाँ जहाँ शंकास्थल थे उनका निराकरण पू० पा० आगमप्रभाकरजी विद्वद्वरेण्य मुनिवर्य श्री पुण्यविजयजी ने किया है। इस महती कृपा से स्व० सम्पादकजी एवं मेरे पर आपने अपनी उपकारपरंपरा सुदीर्घ बना दी है। इस उपकार से स्व० सम्पादकजी धन्यता का अनुभव करते थे तथा मैं कर रहा हूँ।
गुजराती में लिखी हुई इस प्रस्तावना को साधन्त पढ़कर योग्य परामर्श करने के लिए मेरे सम्मान्य स्नेही श्री रतिलालभाई दी. देसाई के प्रति मेरा विनम्र भाव व्यक्त करता हूँ।
प्रस्तुत ग्रन्थ का विषयानुक्रम पढ कर योग्य सूचन करने के लिए पं. श्री हरिशंकरभाई अंबाराम पंडया के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करता हूं।
गुजराती में लिखी हुई इस प्रस्तावना का हिन्दी भाषान्तर श्री रूपेन्द्र कुमार पगारिया ने किया है एतदर्थ मैं उनका ऋणी हूँ।
वसन्त प्रिन्टिग प्रेस के मुख्य नियामक भाई श्री जयन्तीलाल दलाल (दिवंगत) और मेनेजर श्री शान्तिलालभाई तथा अन्य प्रेस कर्मचारियों का मुद्रण कार्य में सद्भावपूर्ण सहयोग मिला अतः उनका भी भाभार प्रकट करता हूँ।
प्रस्तुत ग्रन्थ का सर्व प्रथम प्रकाशन करने के लिए प्राकृत ग्रन्थ परिषद् के मर्मज्ञ नियामकों के प्रति भी सादर धन्यवाद प्रकट करता हूँ। इनके नेतृत्व में ऐसे अनेकानेक अप्रकाशित प्राकृत ग्रन्थ प्रकाशित हो करके यह ग्रन्थमाला समृद्ध होगी ऐसी शुभ कामना व्यक्त करता हूँ श्री महाचीर जैन विद्यालय संचालित
विद्वजनविनेयआगम प्रकाशन विभाग. जैन उपाश्रय
अमृतलाल मोहनलाल भोजक लुनसावाडा, अहमदाबाद १
१ अप्रिल १९७०
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