SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (पृ० १ से २०५) की कथावस्तु पृथ्वीचन्द्र-गुणसागर के ही पूर्व-पूर्वतर भवों की कथारूप होने से ग्रन्थकारने मुख्यनायक पृथ्वीचन्द्र को प्राधान्य देकर ग्रन्थ का पुहइचंदचरिय-पृथ्वीचन्द्रचरित्र ऐसा यथार्थ नाम दिया है। इस ग्रन्थ के बाद अन्य विद्वानोंने रचे हुए पृथ्वीचन्द्रचरित्रों में से किसी को पृथ्वीचन्द्र-गुणसागरचरित्र अथवा पृथ्वीचन्द्र-गुणसागररास ऐसा नाम दिया है । ११ वें भव के कथानायक पृथ्वीचन्द्र और गुणसागर के उस उस पूर्वभव के नाम से पहिचाने जाते कुल भव इस प्रकार है १. प्रथम भव-शंखराजा-कलावती रानी २. द्वितीय भव-कमलसेन राजा-गुणसेना रानी ३. तृतीय भव-देवसिंह राना-कनकसुन्दरी रानी ४. चतुर्थ भव-देवरथ राजा-रत्नावली रानी ५, पंचम भव-पूर्णचन्द्र राजा-पुष्पसुन्दरी रानी ६. षष्ठ भव-सूरसेन राजा-मुक्कावली रानी ७. सप्तम भव-पभोत्तर राजा-हरिवेग राजा ८. अष्टम भव-गिरिसुन्दर राजा-रत्नसार युवराज ९. नवम भव-कनकध्वज राजा-जयसुन्दर युवराज १०. दशम भव-कुसुमायुध राजा-कुसुमकेतु राजपुत्र (पिता-पुत्र) ११. एकादश भव-पृथ्वीचन्द्र राजपुत्र-गुणसागर श्रेष्ठिपुत्र उपर्युक्त ११ भवों के नामोल्लेख पूर्वक, प्रत्येक भव के नगर-नगरी के नाम के साथ तथा प्रत्येक भव के बाद की गति को बता कर किसी विद्वान ने दस गाथाएँ बनाई है वे इस प्रकार हैसंखपुरे संसनियो, कलावई तस्स अस्थि वरभन्जा । सोहम्मे उववाओ, दोण्ह वि मेलो समक्खाओ ॥१॥ पोयणपुरम्मि नयरे, राया नामेण कमलसेणो त्ति। गुणसेणा तस्स पिया, बंभे कप्पे समुप्पन्ना ॥२॥ महराए देवसीहो,-मरोहे ( ! तग्गेहे) कणयसुंदरी भज्जा। सावयधम्मं परिवालिऊण सुक्के समणुपत्ता ॥३॥ आयामुही य नयरी, देवरहो अस्थि नामओ राया। रयणावली य भजा, पाणयकप्पे समुप्पन्ना ॥४॥ नव(य)रे मुसील(? म)नामे राया नामेण पुनचंदो त्ति । भज्जा य पुप्फसुंदरि, उववन्ना आरणे कप्पे ॥५॥ महिलाए नयरीए राया नामेण सूरसेणो त्ति । मुत्तावली य भजा, हिद्विमगेवेजगे दो वि ॥६॥ गन्जणगे नयरम्मी पउम(मु)त्तरनामओ य वेयड्ढे । हरिवेगो विज्जाहर, मज्झिमगेविजगे जाया ॥७॥ पंडरिगिणी य नयरी, गिरिसुंदर रयणसार दु वि भाया। उवरिमगेविजम्मि य सुहसंपत्तम्मि संजाया ॥८॥ तामलित्ती कणगस(झ)ओ य जयसुंदर वरविमाणविजयम्मि। चंपाए कुसुमाउह सबढे कुसुमकेउ त्ति ॥९॥ अवझाउरिम्मि नयरे राया नामेण पुहइचंदो त्ति । हस्थिणउ[]म्मि गुणसायरो त्ति ते सिद्धिसंपत्ता ॥१०॥ उपरकी गाथाओं को पृथ्वीचन्द्रचरित्र की संग्रहणीगाथा कह सकते हैं। श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमन्दिर(पाटण) में स्थित श्री सागरगच्छ जैन ज्ञानभण्डार की पृथ्वीचन्द्रचरित्र की संस्कृतभाषाबहुल प्रति, जिसका मैं पहले निर्देश कर चुका है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001370
Book TitlePuhaichandchariyam
Original Sutra AuthorShantisuri
AuthorRamnikvijay Gani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages323
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy