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इस प्रशस्ति के १९ पद्यों का संक्षिप्त सार इस प्रकार है
भिल्लमालवंश १ । सिद्धू नामके श्रेष्ठी ने अपना समस्त बीवन समी नामके गांव में बिताया २-३ । सिद्ध श्रेष्ठी की .. संपई-संप्रति नामकी पत्नी ४ । सिद्धू और संप्रति का रवलिग नाम का पुत्र ५। रवलिग की छदुई नामकी पत्नी ६ । इस दम्पति के (रवलिग-छदुई के) पासड, नाहड, सिदू, आमिग और सोढू नाम के पांच पुत्र तथा चानण और पाहुया नाम की दो पुत्रियाँ थी ७-१० । नाहड की जाऊ नामकी, सिदू की वाल्या नामकी, आमिग की मोहिनी नामकी और सोडू की लखमी नाम की भार्या थी ११-१२ । नाहड के पाजय और चाइड नाम के दो पुत्र थे १३ | मोडदेव (सोह) का चन्द्रप्रभ नामक पुत्र था १४ । ज्ञान की महिमा का विचार करके सोडू (सोढदेव) ने प्रथ्वीचंद्रचरित्र की यह प्रति श्री अजितसिंहसूरि के लिए लिखाई १५-१८ । यह प्रति यावच्चन्द्रदिवाकरौ भाबाद रहे १९ ।
इस प्रति को लिखानेवाले सोह्र (सोढदेव) के चार सहोदर भाई थे। उनमें एक का नाम सिद्ध भी है और उसके पितामह का नाम भी सिद्धू है इस परसे जो आज भी कुछ खानदान में पितामह और पौत्र का नाम एक सरीखा रखने में आता है उसकी परम्परा प्राचीन है यह समझा जा सकता है।
इस प्रति में भी ग्रन्थगत क्लिष्ट शब्दों के अर्थ को समझने के लिए टिप्पणियां लिखी हैं।
'खं२५ प्रति
यह भी उपरोक्त भण्डार को ताडपत्रीय प्रति है। भण्डार की सूची में इस प्रति का क्रमाङ्क २१५ है। इसकी लम्बाई चौडाई २७.७४२.२ इंच प्रमाण है। इसकी स्थिति जीर्ण है और उसके आद्य चार पत्र तथा अन्तिम पत्र (२१६ वाँ) अप्राप्य है। इससे इसका निश्चित लेखन संवत् नहीं जाना जा सका। किन्तु लिपि के आकार-प्रकार से अनमान किया जा सकता है कि यह प्रति विक्रम की १२ वीं सदी के अन्त में या तेरहवीं सदी के प्रारंभ के वर्षों में लिखी हई होनी चाहिए। पृथ्वीचन्द्रचरित्र में आनेवाले प्रत्येक भव की समाप्ति पर इस प्रति में सुन्दर सुशोभन बनाये हैं। इस प्रति में भी अनेक स्थलों पर ग्रन्थगत क्लिष्ट शब्दों का अर्थ बतानेवाली टिप्पणियां लिखी हुई हैं।
भ्रा०प्रति
यह प्रति अहमदाबाद-शामळा की पोळ के श्री पार्श्वचन्द्रगच्छीय उपाश्रय में स्थित प० पू० आ. श्री भ्रातृचन्द्रसूरि जैन ज्ञानभण्डार में सुरक्षित है । कागद पर लिखी गई इस प्रति के ९९ पत्र है। इसकी लिपि सुन्दर और सुवाच्य है। स्थिति अच्छी है । इसकी लम्बाई चौड़ाई १३१४ ५६ इंच प्रमाण है। प्रत्येक पृष्ठ में दोनों तरफ पीली लकीर और उस पीली लकीर के दोनों तरफ लाल तथा काली स्याही की लकीरें (बोर्डर) अङ्कित हैं । तथा प्रत्येक पृष्ठ के उपर नीचे की सात सात पंक्तियों को छोड़कर मध्य की पांच पंक्तियों के भीतर के मध्य भाग में सुशोभित रूप से अलिखित-कोरा भाग रखा है। उसमें भी लाल पीले रंग के शोभन किये हैं। तथा प्रत्येक पत्र के द्वितीय पृष्ठ के दोनों तरफ के हासियों के मध्यभाग में भी लाल पीले शोभन किये हैं। प्रत्येक पत्र के प्रत्येक पृष्ठ में १९ पङितयां हैं। प्रत्येक पंक्ति में कम से कम ६३ और अधिक से अधिक ७६ अक्षर हैं । ९४ वें पत्र के दूसरे पृष्ठ की १६ वीं पंक्ति में पृथ्वीचन्द्रचरित्र के पूर्ण होने के बाद प्रति लिखानेवाले आचार्य की पुष्पिका इस प्रकार है
१-उत्तर गुजरात में आज भी समी नामका गांव है ।
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