________________
४९१] लोयणपडिबोहो । विणयंधरचउत्थमज्जाए पुश्वभवे गुणसुंदरीनामियं पइ मोहंधस्स वेयरुइणो गामचागो। ४९ विसयाण कए मूढा कुणंति चित्ताई पावकम्माई। निवडंति अपुन्नमणोरहा वि नरए महापावा ॥ ४६५॥ जे उण विसयपरम्मुहहियया सचन्नुसासणे लीणा । तेसिं सुर-नर-सिवपयसुहाई करपल्लवत्थाई" ॥ ४६६ ॥ इच्चाइ निसामितो पडिबुद्धो लोयगो भणइ सम्मं । 'सुठु मुदिटो मग्गो सुंदरि ! तुमए सउन्नाए ॥ ४६७॥ तं मज्झ गुरू सुंदरि !, ता आइस किं करेमि एत्ताहे ? | तीए वुत्तं 'परदारवजणं कुणसु जाजीवं ॥४६८॥ 'एवं' ति पहट्ठमणो पडिवनाणुव्यओ य सो तीए । उववूहिओ खमाविय गओ सनयरं निरुयदेहो ॥ ४६९॥ 5 धम्मो वि पियासहिओ अज्जियइच्छियधणो सुहसुहेण । गंतूण तामलित्ति पवालिओ नियकुलायारं ॥ ४७०॥ इय रिद्विसुंदरीए वि गुरुजणबहुमाणपूयपावाए । सम्मं अकरणनियमोऽणुवालिओ सुद्धभावाए ॥ ४७१ ॥
गुणसुंदरी वि सुरसुंदरी व वियसंतसारसुंदेरा । संपत्ता जगमण-नयणहारयं तारतारुण्णं ॥ ४७२ ॥ दिट्ठा य सहीसहिया कयाइ तणएण वेयसम्मस्स । बडुरण वेयरुइणा जोवणगुणरूवमत्तेण ॥ ४७३॥ परिचिंतियं च “धन्नो अज्जाहं जं पलोइया अज्झा। पउम व पउमपाणी अणिमिसनयणा सुरवहु व्य ॥४७४॥ 10 अवि य
पंकय पंकि चहोडिय कुवलय छुद्ध दहि, विव वि वाडिहिँ घल्लिय ससहरु खित्तु नहि ।
निम्मिवि कर नयणाऽहरु मुंहु लीलावइहिं, उचिट्ठी नियसिडि वि नाइ पयावइहिं ।। ४७५ ॥ तहा
कासकुसुमं व मन्ने सुनिष्फलं जम्मजीवियं निययं । जइ ता इमा मईच्छी न वसइ लच्छि व्य मह गेहे" |४७६ 15 इय विविहं झायंतो मयणानलताविओ ठिओ एसो । जा नयणगोयराओ पत्ता अन्नत्य सा मुद्धा ॥ ४७७ ॥ नायाकूएहिं गिहं नीओ मित्तेहिं देहमित्तेण । मणभमरो पुण तीए मुहारविंदे चिय चहुट्टो ॥ ४७८ ॥
आइज्झियम जण-भोयणाइआवस्सो मयणवसओ । मित्तेहिंतो कहमवि विनाओ वेयसम्मेण ॥ ४७९ ॥ पुत्तसिणेहाइसया सयमेव पुरोहिओ तो तेण । कन्नं विमग्गिओ तं पडिवत्तिपुरस्सरं बहुसो ॥ ४८०॥ 'सावत्थिपुरोहियनंदणस्स दिन'त्ति तेण नो दिन्ना । उत्तमजणाण नूणं न अन्नहा होइ पडिवनं ॥ ४८१॥ 20 राँगुप्पेहडनडिओ वियडमणो दुक्खसंकडावडिओ। न हु होइ अवेयरुई वेयरुई तह वि तधिसए ॥ ४८२ ॥ सच्चं वामो कामो जं जं अइदुल्लहं पराहीणं । वियरइ तत्थऽणुरायं साहीणे णाऽऽयरं कुणइ ॥ ४८३ ॥ मितलपित्तपलित्तो तो सो गुणसुंदरीनिहियचित्तो । सिक्खइ मंतपयाइं इच्छइ य उवाइयसयाई ॥ ४८४ ॥ नवरं ऊसरच वियं बीयं व फलंति ताई नो तस्स । आरंभा पुन्नविधज्जियाग कत्तो फलं देंति ? ॥ ४८५ ॥ परिणीया य कयाई सावत्थीआगएण सुमुहुत्ते । पुन्नाहिएण विहिणा सा बाला पुनसम्मेण ।। ४८६॥ 25 घेत्तूण तं मयछि नियनयरिं पडिगो पुरोहसुओ । इयरो विसायविहुरो छोहियकियवो व संजाओ ।। ४८७ वियलियकुलाभिमाणो विरलीकयदेव-विष्पबहुमाणो । वइ अवसट्टो सो तइया वेयरुइभट्टो ॥ ४८८ ।। पीयासवो व्व धुत्तीरिओ व विसघारिओ गहिल्लो ब । जाओ तओ वराओ कज्जा-ऽकज्जाइमइविमुहो॥४८९॥ अण्णदिणे संभाविय 'किं तीए वज्जियस्स जीएण? | अबइज्झिऊण सव्वं सागेयाओ विणिक्खंतो ॥४९०॥ चलिओ सावत्थिं पइ तल्लाभोवायमग्गणसयण्हो । पत्तो गिरिदुग्गगयं पल्लिं सबराण सुविसालं ॥ ४९१ ॥ 30
१ तीए भणिय 'पर' जे०विना ॥ २ अणमिस जे०विना ॥ ३ मुह भ्रा० ॥ ४ मयच्छी न विसइ जे०विना ॥ ५ यमोयण-मजणाइआव जे०विना ॥ ६ 'मओ पुणो तेण जे०विना ॥ ७ संकेत:-"रागुप्पेहड त्ति रागोटता" । “रागे उत्करः" जेटि० ॥ ८ सङ्केत:-"मित्तल त्ति कन्दर्पः” । “कामः, स एव पित्तं तेन प्रदीप्तः" जेटि० ॥ ९ धुत्तरिओ खं१ ॥
पु०७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org