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संक्षिप्तसारे प्राकृताध्यायः
[IV. 32ऋद्-उद्धलभ्यः शङ लडादौ ॥३२॥ लट्-लोट्-लङ -लिङसु परेषु ऋदन्तोदन्त-हलन्तेभ्यो धातुभ्य उत्तरे शङ भवति ॥ मरइ। रवइ। देवइ ॥ कचित् शः ॥ पुरइ । फुरइ ॥
दादेरजेत् ॥३३॥ लडादौ परे दादेरजेद् भवति ।। देई। धेहि ॥
इदन्तस्य णोण्णः ॥२४॥ एण्णइ । कारेण्णइ॥
अइलुंडादौ ॥३॥ दइहिइ ॥
अदेङ वा ॥३६॥ लडादौ परे अकार एङ वा भवति ॥ हसइ हसेइ वा । चअइ चएइ वा ॥
हाविङ ऋद्धल्भ्याम् ॥३०॥ हो परे ऋतो हलश्चोत्तरे इङ भवति ॥ एङ वा॥ मरिहिइ मरेहिइ वा। पडिहिइ पडेहिइ वा॥
सेङ ऋद्भ्यां तु-तव्य -वासु ॥३८॥ vr. VII. 38 हसिउं हसेउं वा॥ हसिअव्वं हसेअव्वं वा॥ हसिऊण हसेऊण वा॥ मरिसं मरेङ वा ॥
Vr. VII.34
प्रायेणेङ ऋतःक्ने ॥३६॥ धरिओ। ओसरिओ॥ कचिन्न स्यात् । अम को।
1) In P this is given as a separate सूत्र ( No. 33 ). 2) P. तु तव्यम् । P.-तूण। 4) In P this is given as a separak sutra ( no. 41).
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