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-IV. 31]
तिङन्त-कार्यम् अजन्ताद् ही ॥२४॥ अजन्ताद्धातोरुत्तरस्य लङादेः स्थाने हीअ इत्ययमादेशो भवति॥ होहीअ॥ नानेकाचः ॥२॥
Vr. VII. 22 दलिदाई॥
उ स्स [ सं'] लिङ-लोटोरेकत्वे ॥२६।। प्रथमपुरुषादेरेकत्वे लिङ्-लोटोः स्थाने यथाक्रमम् उ स्स [ सं1 ] इत्येते भवन्ति ॥ हसउ। हसस्स । हसस्सं ॥
स्सस्याद् वा ॥२७॥ हस। वह। भिंद ॥ न्तु-ह-मो बहुषु ॥२८॥
Vr. VII. 19 बहुषु लिङ-लोटोः स्थाने यथाक्रम न्तु ह मो इत्येते भवन्ति ॥ होतु । होह। होमो॥
ज्ज.ज्जा वाजन्ताल्लडादौ ॥२६॥ लट्-लङ -लुङ -लिट्-लिङ-लोट-लुडादौ परेऽजन्ताद्धातोरुत्तरे ज्ज-ज्जा इत्येतौ वा भवतः ॥ लट। होइ होजइ होज्जाइ वा॥ लङ लुङ लिट् । होहीअ होईअ होज्जईअ होजाईअ वा। लिङ लोट। होउ होज्जउ होजाउ वा ॥ लुट लट् लङ । होहिइ होज्जहिइ होजाहिइ वा ॥
लङ -लुङ -लिङ भिर्वा ॥३०॥ होइ होहीअ होज होज्जा वा ॥ नानेकाचः ॥३१॥
I. दलिदाइ ॥
1) Emended by me. P reads स्म ।
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