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( ७१ )
५.
राजा का रोष । बांधकर सुंसुमार द्रह में डालने का आदेश | चांडाल की व्रत में दृढ़ता
६. द्रह में फेंके जाने पर धर्म की सहायता । सिंहासन व देवों द्वारा पूजा । व्रत छुड़ाने वाले राजा की भूत पिशाचों द्वारा पिटाई व नगर भ्रमण | राजा द्वारा त्राहि-त्राहि की पुकार ।
चांडाल द्वारा कुल-स्वामी कहकर राजा की मुक्ति । राजा द्वारा उसका राजकुमारी से विवाह व अर्ध राज्य का दान । सबकी धर्म में श्रद्धा ।
७.
८.
६.
सत्यव्रत का फल - मातंग कथा । भरत क्षेत्र, दक्षिणापथ, मलयखंड मातंग दुर्ग, शबर देश । वहां विवाहकाल में छह मास ब्रह्मचर्यं रचकर विद्यासाधन की व्यवस्था । सत्यता से व्रतपालन का महात्म्य |
सत्य का दुष्परिणाम । वासुराजकी कथा । विनीता देश शोध्या नगर, विश्वावसु राजा, वसु राजपुत्र, क्षीरकदम्ब गुरु । पुत्र पर्वत, अन्य शिष्य नारद । तीनों का विद्याध्ययन |
१०.
पर्वता की जड़ता । गुरु और गुरुपत्नी में विवाद ।
११. गुरु द्वारा तीनों की परीक्षा । कौड़ियों के चने लेकर खाओ और कौड़ियां वापिस लाओ । पर्वत चने खाकर आ गया । वसुं और नारद कुछ चने खाकर, उन्हें बुरे कह कौड़ी वापिस ले श्राये । पत्नी का ध्यानाकर्षण ।
१२. दूसरी परीक्षा । कोड़ी भी वापिस लाओ और घड़े भी घी से भर लाभो । पर्वत की असफलता व वसु-नारद की सफलता । तीसरी परीक्षा । जहां कोई न देखे. वहां बकरे के कान काटकर लाओ । पर्वत कान काटकर ले आया । वसु और नारद ने ऐसा नहीं किया ।
१३. उन्होंने गुरु को कहा ऐसा कोई स्थान उन्हें न मिला जहां सूर्य, चन्द्र आदि कोई भी देख न रहे हों । गुरु द्वारा प्रशंसा । गुरुपत्नी को भी भरोसा हुआ । वृहदारण्यक का अध्यापन । दो चारण मुनियों का श्रागमन ।
१४. शिवभद्र और वीरभद्र का अपने अपने धर्म का समर्थन । वीरभद्र की भविष्यवाणी कि उनमें से एक नरक जायगा ।
१५. गुरु की उक्त वाणी सुनकर तपग्रहण | गुरुपत्नी द्वारा शिष्यों को खोज में प्रेषण | पर्वत द्वारा गुरु का निर्ग्रन्थ रूप में दर्शन ।
१६. गुरु का परिधान, पनही व यज्ञोपवीत लाकर माता को प्रदर्शन । पर्वत को प्राचार्य पद प्राप्ति । विश्वावसु राजा का भी तप-ग्रहण वसु का राज्याभिषेक । १७. वसु का गुरुपत्नी को वरदान । पुलिंद द्वारा स्फटिक शिला की प्राप्ति व राजा को भेंट | वसु द्वारा उसकी राज सिंहासन के नीचे स्थापना । सिंहासन अन्तरिक्ष में स्थापित समान ।
१८. वसु की 'उपरिचर' उपाधि | नारद का पर्वत से अज के अर्थ पर विवाद - छेलक या यवब्रीहि ? नारद द्वारा गुरूपदेश से दूसरे अर्थ की पुष्टि । १९. दोनों में कलह । असत्य होने पर अपनी अपनी जीभ कटा डालने की प्रतिज्ञा । वसु मध्यस्थ । पर्वत की चिन्ता । माता द्वारा नारद के मत की पुष्टि ।
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