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________________ २६७ ( ६९ ) १२. अर्हद्दास वणिक् व भार्यानों का संतोष । किन्तु कुन्दलता की अप्रतीति । राजा द्वारा कल उसका निग्रह करने का विचार । गृहगमन व प्रातः वणिक् के घर पुनरागमन, रात्रि वृत्तान्त कथन तथा कुन्दलता के अविश्वास के विषय में प्रश्न। कुन्दलता का स्पष्टीकरण । धर्म का ऐसा माहात्म्य देख सुनकर भी इन्होंने तप क्यों नहीं ग्रहण किया। इसी से उसकी अश्रद्धा स्वयं जिनधर्मी न होने पर भी उनका वृत्तान्त सुनकर जैनदीक्षा लेने की प्रतिज्ञा। राजा व समस्त सभा की अनुमति व प्रशंसा । १४. उदितोदित राजा, सुबुद्धि मंत्री, सुवर्णखर चोर व अन्य अनेकों की जिन-दीक्षा। मित्रश्री आदि सेठानियाँ प्रायिकायें हुईं। सबका धर्म प्रचार व स्वर्गारोहण । २६७ २६७ पृष्ठ २६६ २६६ ३०० संधि-२९ कडवक १. जीव हिंसा के दुष्परिणाम पर छलक-कथा। नासिक नगर की पश्चिम दिशा में कोंकण देश, पलाश ग्राम । ग्राम प्रमुख सुदाम, पुत्र वसुदाम । विशाल तालाब व तट पर उद्यान व उसके बीच दुर्गादेवी के मंदिर का निर्माण । वार्षिक उत्सव, रथयात्रा, सुदाम को क्षयव्याधिज्वर । मरणासन्न पुत्र को भोजन व देवी की छमाही रथयात्रा का आदेश । २. सुदाम की मृत्यु व छेलक के रूप में पुनर्जन्म । देवी को उसका बलिदान सात बार । आठवीं बार मुनि दर्शन से बकरे को जाति स्मरण । मुनि का वसुदाम को यथार्थ कथन । ३. मुनि कथन में वसुदाम का संशय । मुनि द्वारा जीवहिंसा से अधर्म और उसके दुष्परिणाम का कथन । वसदाम द्वारा सत्य की कसौटी–यदि वह अपना गुप्त धन बता सके। बकरे ने वैसा ही किया। वसुदाम का विश्वास और पश्चात्ताप तथा दीक्षा-ग्रहण । लोगों ने भी महाव्रत या अणुव्रत लिये । छेलक ने भी श्रावक-व्रत लेकर स्वर्ग प्राप्त किया। जीवदया आत्मदया का रूप । मृगसेन धीवर की कथा। अवंती देश, शिंशप ग्राम, शिप्रानदी पर मृगसेन धीवर । यशोधर मुनि का आगमन । धीवर की वन्दना व व्रत-याचना । मुनि की अनिच्छा । धीवर द्वारा प्रथम जाल में फंसी मछली को छोड़ने की प्रतिज्ञा। शिप्रा में एक ही मछली पांच बार पकड़ी और छोड़ी। रिक्त लौटने पर गृहिणी से प्रश्नोत्तर । ७. गृहिणी का रोष व गृह से निर्वासन । एक शून्य गृह में रात्रि निवास । भुजंग दंश से मृत्यु । उज्जयिनी में गुणपाल सेठ की धनकीति कन्या । ८. राजा द्वारा कन्या की याचना । सेठ का अस्वीकार । धन श्रीदत्त वणिक् के पास रख, कन्या को ले विदेश गमन । इधर श्रीदत्त के यहाँ गुणपाल के पुत्र का जन्म । उसी के गृह स्वामी बनने की मुनि द्वारा भविष्यवाणी। ३०१ ३०१ ३०२ ३०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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