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________________ ( ६८ ) १३. देवी द्वारा सार्थ का पुनर्जीवन व मार्गदर्शन । सबका गृहागमन । देवी द्वारा पूजा-सम्मान । राजा सहित उमक का तप-ग्रहण । कनकलता की इसी से सम्यक्त्व-दृढ़ता। २६१ पृष्ठ २६२ २६२ २६३ २६३ सन्धि २८ कडवक १. विद्युल्लता को कथा-तरपू जनपद, सूर्य-कौशाम्बी नगरी, सुगंड राजा, विजयारानी । सुरदेव वणिकपुत्र । वाणिज्य हेतु भगलिदेश गमन व एक विशेष तुरग लाकर राजा को उपहार । मासोपवासी मुनि का आगमन । पाहारदान । उसी नगर के सागरदत्त सेठ का पुत्र समुद्रदत्त । २. अश्व प्राप्ति के लिये दो मित्रों सहित भगलिदेश गमन । तीन वर्ष पश्चात् पलाशग्राम में मिलने की सम्मति । अशोक नामक गृहस्थ के घोड़ों की रक्षा के लिये सेवा स्वीकार । अशोक की पुत्री कमलश्री। ३. कमलश्री का सागरदत्त से स्नेह । सेवावधि की समाप्ति पर सागरदत्त के गमन का विचार । कमलश्री की साथ जाने की इच्छा। वणिक द्वारा निवारण । ४. दोनों में विवाद । कन्या का प्राग्रह । वणिक् द्वारा स्वीकृति । कन्या द्वारा जलगामी व माकाशगामी दो दुर्बल तुरंगों की याचना का संकेत । ५. दोनों अश्वों के लक्षण । गमन के समय सागरदत्त द्वारा उन्हीं का चुनाव । अश्वस्वामी की चिन्ता। अन्य अश्व चुनने की सलाह । ६. स्वामी द्वारा भेद खोलने वाले की खोज । किसी ने कन्या को दोषी बतला दिया । अन्ततः दोनों का विवाह व अश्वदान । ७. नाव द्वारा गमन । नाविक द्वारा एक तुरग की मांग । अस्वीकार । पुनः उसी तीर पर अवतरण । आकाशगामी अश्व द्वारा आगमन । जलगामी अश्व का भी प्रानयन । ८. राजा को आकाशगामी अश्व की भेंट । बदले में प्राधा राज्य तथा राजकुमारी अनंगसेना की प्राप्ति । राजा द्वारा सेठ ऋषभसेन को उसका भेंट किया हुआ अश्व पालनार्थ भर्पण । उस पर बैठकर सेठ की तीर्थ वंदना। प्रत्यन्त निवासी जितशत्रु । छली चरट । उसकी उस प्रश्व को पाने की इच्छा। कोंडु नामक सहस्रभट द्वारा ब्रह्मचारीवेष में जाकर अश्व का अपहरण । अश्व द्वारा चोर का पात । चोर की मृत्यु । अश्व का सिद्धकूट जिनभवन को गमन । चिंतागति व मनोगति चारण मुनियों द्वारा विद्याधर को अश्व का वृत्तान्त वर्णन । विद्याधर द्वारा तीन थपकी देने से अश्व का सूर्य-कौशाम्बी प्रत्यागमन । इधर सेठ का अनशन । ११. अश्व के लोप से राजा का कोप । सेठ को प्राणदंड । पुरदेवी द्वारा रक्षण । अश्व की भाकर प्रदक्षिणा । देवों द्वारा पुष्पवृष्टि आदि । राजा व सेठ आदि ... का तपग्रहण । इसी से विद्युल्लता की दृढ़ता । २६४ २६४ २९५ २६५ २६६ २९६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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