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________________ २६८ २६६ २६६ २७० २७१ ( ६५ ) ४. माता द्वारा उपाय की प्रतिज्ञा व पुत्री को आश्वासन । कापालिक का प्रागमन । विश्वास उत्पन्न कर बन्धुश्री से कथन । ५. बंधुश्री द्वारा जिनदत्ता को मार डालने का प्रस्ताव कापालिक की स्वीकृति । . चतुर्दशी की रात्रि को कापालिक द्वारा श्मशान में चंडमारी देवी की पूजा व शव का जागरण । जिनदत्ता को मारने का आदेश, किन्तु देवी जिनमंदिर-प्रवेश में असमर्थ । तीन बार गमनागमन । चौथी बार दो में से जो भी दुर्भाव युक्त हो उसे मारने का आदेश । ८. देवी द्वारा कांचनश्री का हनन । प्रातःकाल माता द्वारा कांचनश्री को देखकर राजा से प्रार्थना । सेठ-सेठानी को बाँधकर लाने की राजाज्ञा । गृहद्वार पर पुरदेवी द्वारा किंकरों का स्तंभन । ६. वृत्तान्त सुनकर जिनदत्ता का अनशन व ध्यान । कापालिक द्वारा यथार्थ वृत्तान्त की घोषणा । देवी द्वारा जिनदत्ता के निर्दोष होने की घोषणा। १०. इस प्राश्चर्य दर्शन से राजा को वैराग्य, सब लोगों में धर्मरुचि । ऋषभदास और जिददत्ता की प्रव्रज्या । इसी आश्चर्य से मित्रश्री की सम्यक्त्व में दृढ़ता । कुन्दलता का अविश्वास । खंडश्री का कथानक । कुरुजांगल देश, हस्तिनापुर, सोमदत्त द्विज, गुणी, किन्तु निर्धन । सोमिल्ला पत्नी की मृत्यु । शोक । मुनि उपदेश से शान्ति व श्रावक व्रत ग्रहण । ऋषभदास वाणिक के घर निवास । १२. मरण समय पुत्री सोमा को श्रावक से विवाहने की सेठ से प्रेरणा । यौवन । धूर्त रुद्रदत्त । १३. जुवाड़ियों द्वारा सोमा का परिचय । उसे विवाहने की रुद्रदत्त की प्रतिज्ञा । जुवाड़ियों ने कठिनाई बतलाई । रुद्रदत्त ने प्रतिज्ञा की यदि उसे न विवाहूं तो सबके समक्ष अग्नि-प्रवेश करूं । रुद्रदत्त का देशान्तर गमन। मुनि के समीप ब्रह्मचारी बना व आकर ऋषभदास के मंदिर में ठहरा। १५. सेठ का प्रश्न । अपनी तीर्थ वन्दना का विवरण । अपने पूर्वाश्रम तथा व्रत ग्रहण का परिचय । १६. यह जानकर कि उसने प्राजन्म ब्रहचर्य व्रत नहीं लिया, सेठ द्वारा सोमा से विवाह का प्रस्ताव । रुद्रदत्त का संसार से विरक्ति का प्रदर्शन । सेठ के अनुरोध से विवाह सम्पन्न । दूसरे ही दिन रुद्रदत्त का द्यूतशाला-प्रवेश व प्रतिज्ञा-पूर्ति का अभिमान । कुट्टिनी-पुत्री कामलता से पूर्ववत् प्रेम । सोमा का दुख । देवभवन निर्माण । बिम्बप्रतिष्ठा । उद्यापन । रुद्रदत्त, कुट्टिनी आदि को भी निमंत्रण । सोमा का सौन्दर्य देख कुट्टिनी की ईर्ष्या । १८. सोमा को मारने का उपाय-कलश में सारोपण । सोमा के निकालने पर वह पुष्पमाला हुआ । बिदा के समय सोमा द्वारा कामलता को पुष्पमाला अर्पण । १६. पुष्पमाला ने सर्प बनकर कामलता को डंसा कुट्टिनी-द्वारा सोमा पर दोषा रोपण । राजसभा में विवाद । सोमा का यथार्थ निवेदन । २७२ २७२ २७३ २७३ २७४ २७४ २७५ २७६ २७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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