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________________ २५५ २५६ २५६ १६. पता लगा या नहीं, ऐसे राजा के प्रश्न पर आरक्षक का अपनी सुनी हुई सुभा षित व हंसों की कथा सुनाना । मूल से वल्ली उत्पन्न हुई। शरण से ही भयोत्पत्ति । सरोवर तट पर एक ऊंचा वृक्ष। उस पर हंसों का निवास । मूल से लता की उत्पत्ति । वृद्ध द्वारा उसे खंडित कर डालने का उपदेश । बालकों का उपहास । बेल बढ़ी । उसी से चढ़कर व्याध द्वारा सब हंसों को जाल में फँसाना। वृद्ध के उपाय से रक्षा । १८. दूसरे दिन राजा के प्रश्न पर कुलाल की बात, जिससे पोषण उसी से पीठ टूटी। मिट्टी के पिंड से जीवन, उसी से पीठ टूटना। तीसरे दिन की बात । वरशक्ति नगरी के नरेश वरधर्म की विजय-यात्रा, किन्तु प्रतोली के पतन का अपशकुन । . १६. प्रतिदिन प्रतोली का निर्माण व रात्रि को ध्वंस । मंत्री द्वारा नरबलि का सुझाव । राजा का निषेध, किन्तु प्रजा द्वारा एक लाख दीनार में नरबलि खरीदने की घोषणा। २०. वरदत्त ब्राह्मण द्वारा सात पुत्रों में से सर्व लघु का विक्रय । प्रतोली की ओर बालक का हंसते हुए आगमन । २१. पूछे जाने पर बालक का उत्तर । बाप से डरकर शिशु माता की शरण जाता है, माता से डरकर पिता की। पिता से डरकर राजा की व राजा से डरकर नागरिकों की । किन्तु सभी के विरुद्ध होने पर धैर्य के सिवाय क्या शरण ? यह सुनकर राजा द्वारा बालक की मुक्ति । देवों द्वारा साधुकार, राजा की पूजा व गोपुर का पुनः अचल होना। संधि-२४ २५७ २५७ २५७ कडवक पृष्ठ २५६ १. प्रारक्षक द्वारा चौथे दिन अहाना । जहाँ सर्वजल विषमय, वन कूटच्छादित और राजा स्वयं व्याध हो, वहाँ मृगों का वास कहाँ ? पांचवें दिन का कथानक । पाटलिपुत्र, वसुपाल राजा, चित्रकवि मंत्री। कवित्व में मात्सर्य । राजा को कोप। बांधकर गंगाद्रह में प्रक्षेप । डूबते हुए सुभाषित । सुनकर राजा को संतोष व बंधन से मुक्ति। छठे दिन की कथा। कुसुमपुर के राजा सुभद्र । सातवें दिन की कथा२. उज्जयिनी नगर । यशोभद्र सार्थवाह । वाणिज्यार्थ गमन । सायंकाल लौटकर व माता का वस्त्र देखकर पत्नियों को संबोधन । इस प्रकार छह दिन बीतने पर राजा का रोष । आरक्षक का मणिपादुकादि लाकर प्रदर्शन । ३. राजा स्वयं चोर सिद्ध। राजा का परिवार द्वारा निष्कासन व राजपुत्र का अभिषेक । मर्यादा भंग का दुष्परिणाम । __ मथुराधीश द्वारा मंत्री की प्रशंसा । नगर परिभ्रमण का प्रस्ताव । अंजन विद्या सिद्ध कांचनखुर चोर का दर्शन । उसके पीछे-पीछे अहंदास के महल तक गमन । महल के समीप वटवृक्ष पर चोर चढ़ा और राजा व मंत्री वृक्ष के नीचे ठहरे । उसी समय सेठ का अपनी पत्नियों से प्रस्ताव । २५६ २६० २६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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