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________________ ४. " ५. ६ ७. ८, ε. १०. ११. १२. १३. १४. १५. ( ६२ ) इस पर पुनः श्लोक रचना । संध्या समय मेंढ़क को निकला देख तीसरे इलोक की रचना | ग्राम के समीप कुएँ की शिला पर गड्ढे देखकर पनिहारिनों से कारण पूछा और जानकर चौथी गाथा की रचना । मन में विचार उठा क्या मेरा मन पाषाण से भी निष्ठुर है ? पुनः गुरु समीप श्रागमन । अपने नगर के नन्दन वन में वास । मंत्री की आशंका व राजा को दुमंत्रणा । तलवारें लेकर मारने के लिये श्राना । मुनि का प्रथम श्लोक सुनकर राजा को श्राशंका । मुनि का दूसरा श्लोक सुनकर राजा को राजपुत्री कोणिका का स्मरण । तीसरे श्लोक से मंत्री की पाप बुद्धि की आशंका । राजा द्वारा क्षमा-याचना व श्रावक व्रत ग्रहण | दुष्ट मंत्री का निस्सारण । मुनि की गुरु से भेंट । तपवृद्धि, बुद्धि का विकास, ऋद्धि-सिद्धि । केवलज्ञान । मोक्ष । पंचनमोकार मंत्र के प्रभाव पर दृढ़सूर्य की कथा - उज्जयिनी, धनपाल राजा, दृढ़सूर्यं चोर को अंजन-विद्या सिद्ध । उसकी प्रिया वसन्तसेना की रानी का हार पाने की इच्छा । दृढ़सूर्य द्वारा श्राश्वासन व महादेवी के हार का अपहरण । बंधन व राजाज्ञा से शूली आरोपण । जिनभक्त धनदत्त सेठ का श्रागमन । उनसे जल प्रार्थना । पंचनमोकार मंत्र देकर सेठ का पानी लेने जाना। चोर का मंत्रोच्चारण करते हुए स्वर्गवास । धनदत्त के चोर से संबंध की आशंका से उसका धन अपहरण करने की राजाज्ञा । द्दढ़सूर्य देव द्वारा रक्षा । राजा का भागकर जिनेन्द्र भवन में सेठ की शरण में जाना । वृत्तान्त जानकर सेठ व वणिक् की मुनिदीक्षा । शूली के स्थान पर शुलेश्वर की आज भी पूजा । शूली द्वारा प्राहत की एक और कथा - उत्तर मथुरापुरी, उदितोदित राजा, सुदितोदय पुत्र, सुबुद्धि मंत्री, श्रद्दास वणिक् और उसकी मित्रश्री आदि सात पत्नियां । सुवर्णखुर नामक चोर । कार्तिक शुक्ला भ्रष्टमी को कौमुदी महोत्सव । सात दिन धर्मोत्सव । पूर्णिमा को युवतियों की वनक्रीड़ा व पुरुषों के नगर में निवास की राजाज्ञा । सूर्यास्त वर्णन । चन्द्रोदय वर्णन | नरेश द्वारा प्रिया का स्मरण तथा मंत्री से वन में चलकर युवति-क्रीड़ा देखने का प्रस्ताव । मंत्री द्वारा विरोध व अहाना । हस्तिापुर में सुयोधन राजा । विजय-यात्रा | लौटने पर प्रजा का अभिनन्दन व राजा का कुशल प्रश्न । प्रजा द्वारा आरक्षक के शासन की प्रशंसा । ईर्ष्या से राजा का रोष व आरक्षक पर सन्देह | मंत्री व पुरोहित से मंत्रणा व भाण्डागार में खात लगाकर द्रव्यापहरण व उस यमपाश आरक्षक को खोज लगागे का आदेश | 1 आरक्षक का निरीक्षण व उसी स्थान पर मणिमय पादुका, यज्ञोपवीत और कटारी की प्राप्ति । सात दिन में चोर का पता लगाने का राजा का प्रदेश | आरक्षक की नागरिकों को सूचना । Jain Education International For Private & Personal Use Only २४६ २५० २५०. २५१ २५१ २१२ २५२ २५३ २५३ २५४ २५४ २५४ २५५ www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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