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________________ ६. १०. ११. १२. १३. १४. १६. ( ६१ } तो सदा के लिये ब्रह्मचारिणी । पंडिता धात्री को रानी का आत्मनिवेदन व उसके द्वारा संबोधन । रानी का हठ व अभिलाषा पूर्ण न होने पर अग्नि प्रवेश की प्रतिज्ञा । पंडिता का श्राश्वासन । कुंभकार को सात पुरुषाकार प्रतिमायें बनाने का आदेश । प्रतिपदा के दिन एक प्रतिमा लेकर रात्रि में राजाद्वार में प्रवेश । द्वारपाल द्वारा निषेध । पंडिता का रोष । प्रतिमा को फेंककर फोड़ डालना । रानी के पुरुष व्रत भंग का भय दिखलाना । द्वारपाल की क्षमा याचना । इसी प्रकार सात दिनों में सातों द्वारपालों को सिद्ध कर लेना । भ्रष्टमी के दिन उपवास युक्त श्मशान में ध्यानस्थ सुदर्शन सेठ का श्रानयन । रानी द्वारा चलायमान करने का प्रयत्न । सुदर्शन की निश्चलता । कल के दिन सकुटुम्ब शूली दिलाने की धमकी । सुदर्शन की कि इस उपसर्ग से बचने पर तप ग्रहण रात्रि का अवसान । सेठ पर शीलहरण का दोषारोपण । राजा द्वारा मृत्युदंड | श्मशान में ले जाकर शिरच्छेद का प्रदेश । नागरिकों का खेद और श्राश्चयं । श्मशान में पहुँचकर ग्रीवा पर प्रहार । कृपाण पुष्पमाला हो गयी । देवों द्वारा पुष्पवृष्टि । राजा की मनवार, तथापि सेठ की मुनिदीक्षा | रानी द्वारा फाँसी से आत्मघात व राक्षसी जन्म-ग्रहण | धात्री पाटलिपुत्र भाग गयी व देवदत्ता गणिका के घर रही । १५. सुदर्शन साधु का पाटलिपुत्र में विहार | पंडिता द्वारा दर्शन व गणिका को परिचय । देवदत्ता की उसे वशीभूत करने की प्रतिज्ञा । मुनि को गृहप्रवेश कराकर द्वार मुद्रण । तीन दिन तक मुनि को क्षुब्ध करने का प्रयत्न । पश्चात् श्मशान में मोचन । मुनि का प्रतिमा-योग | श्मशान में उस व्यंतरी द्वारा सात दिन उपसर्ग । केवलज्ञान की उत्पत्ति । देवों द्वारा स्तुति । उपदेश । गणिका, पंडिता तथा व्यन्तरी द्वारा सम्यक्त्व-ग्रहण | संधि - २३ ३. कडवक १. ज्ञानोपयोग के फल पर यमराज मुनीन्द्र की कथा -प्रोड्र विषय, धर्म नगर, यम नरेन्द्र, धनवती रानी, खर नामक दुर्मति पुत्र, कोणिका पुत्री, भविष्य वाणीकोणिका का पति चक्रवर्ती होगा । भय से राजा द्वारा भूमिग्रह में निविष्ट | सुधर्म मुनि का श्रागमन | लोगों की वन्दन यात्रा । मंत्री द्वारा जानकर वादनिमित्त राजा का भी गमन । २. मुनि के माहात्म्य से राजा मूढ़ होकर मौन । राजा का तप-ग्रहण । प्रयत्न करने पर भी दुर्लभ । पूर्वदेश की तीर्थयात्रा हेतु गमन खंड श्लोक की रचना । श्रागे नगर में । धैर्यपूर्वक प्रतिज्ञा रानी का प्रपंच । Jain Education International खर नामक पुत्र को राज देकर शास्त्र के एक अक्षर का भी ज्ञान खरयुक्त रथ का दर्शन । बालकों का खेल व अड्डी का लोप । For Private & Personal Use Only २४२ २४३ २४३ २४४ २४५ २४५ ६४५ २४६ २४७ पृष्ठ २४८ २४८ www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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