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________________ २३५ २३६ ११. एक का अच्युत स्वर्गगमन व दूसरे का विद्युत्प्रभ देव के वाहन हस्ति का पर्याय । प्रथम की नन्दीश्वर यात्रा व द्वितीय से भेंट । १२. अपने-अपने धर्म का समर्थन । दोनों का यमदग्नि के समीप यमन ।। १३. पक्षि-प्रपंच द्वारा यमदग्नि को क्षुब्ध करना । पुत्र बिना सद्गति नहीं, इस विश्वास से यमदग्नि का कान्यकुब्ज जाकर रेणुका से विवाह व परशुराम पुत्र की उत्पत्ति । राजगृह के श्मशान में जिनदास श्रावक का अटल प्रतिमायोग । १४. जिनदास का योग भंग करने हेतु नाना उपसर्ग, किन्तु उसका चित्त अचल ।। १५. अच्युत देव द्वारा प्रसन्न होकर जिनदास को प्राकाशगामिनी विद्या का दान । मिथिला नगर में पद्मरथ राजा वासुपूज्य तीर्थकर की वन्दना हेतु प्रस्थित । नगरदाह आदि उपसर्गों से भी वह अडिग रहा। १६. विश्वानुलोमचर को सन्तोष व योजनघोषाभेरी का पारितोषिक । ममितप्रभ देव द्वारा सर्वव्याधिहर-हार का दान । पद्मरथ नरेश द्वारा तप ग्रहण व गणधरपद प्राप्ति तथा मोक्षगमन । विश्वानल देव द्वारा सम्यक्त्व ग्रहण । २३६ २३७ २३७ २३७ संधि--२२ कडवक पृष्ठ २३६ २३६ १. नमोकार मंत्र को पाराधना के फल पर सुदर्शन चरित्र । अंग जनपद, चंपापुरी, धाड़ीवाहन राजा, अभयमती रानी। ऋषभदास वणिक्, अरुहदासी सेठानी, सुभग गोपाल का गाय लेकर वन-गमन । माघमास की शीत में योगस्थित मुनि का दर्शन । चिन्तावश रात्रि में निद्रा भंग । प्रातः मुनिदर्शन। २. नमोकार मंत्रोच्चारण के साथ मुनि का प्राकाश-गमन उस मंत्र को ही आकाश-गमन का कारण जान गोपाल द्वारा उसी का सर्वकाल उच्चारण वणिक द्वारा निवारण । गोपाल का आग्रह देख अनुमति । ३. एक दिन महिषियों का नदी पार पर-क्षेत्र में गमन । उन्हें लोटाने जाते समय नदी में एक पैने शूल से गोपाल का छेदन व मृत्यु व उसी सेठ के यहाँ सुदर्शन नामक पुत्र के रूप में जन्म । कलाभ्यास यौवन । ४. यहीं सागरदत्त की मनोरमा नामक कन्या से विवाह । सुकान्त नामक पुत्र की उत्पत्ति । ऋषभदास का तप व स्वर्गवास । सुदर्शन प्रसिद्ध सेठ हुआ। उसका मित्र कपिल । उसकी पत्नी कपिला सुदर्शन पर प्रासक्त । दूती सम्प्रेषण । ५. मित्र-मिलन हेतु सुदर्शन का आगमन । कपिला का एकान्त में ले जाकर प्रेम प्रदर्शन । सुदर्शन द्वारा नपुंसक होने का बहाना । वसंतागमन । राजा का वनक्रीड़ा हेतु गमन । मनोरमा को देखकर अभया रानी का विस्मय । कपिला द्वारा उसका परिचय पाने की इच्छा । रानी द्वारा परिचय । ७. कपिला का उसके पुत्र के विषय में संशय व वृत्तान्त-कथन । रानी ने उसे सुदर्शन का बहाना बताया। ८. कपिला की रानी को चुनौती । रानी की प्रतिज्ञा-यदि सुदर्शन से रमण न करे २४० २४१ २४१ २४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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