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________________ २२८ २२८ ( ५६ ) के रूप में जन्म । वसुंधरी का मौनव्रत के फल संबंधी प्रश्न । मुनि का उत्तर । २२. मौनव्रत के उत्तम फल । २३. मौनव्रत का उद्यापन । वसुंधरी का मौनव्रत धारण । सिर के श्वेत केश देखकर राजा को वैराग्य । वासुपूज्य तीर्थंकर का उद्यान में प्रागमन । २४. राजा की वंदनयात्रा, धर्म श्रवण, दीक्षा, गणधरपद प्राप्ति, मुक्ति । महादेवी का भी तप व स्वर्गगमन । २२६ पृष्ठ AN २३१ २३२ २३२ २३१ संधि-२१ कडवक १, भक्तिफल पर क्षीरकदम्ब की कथा । हस्तिनापुर में पाण्डव राज्य । द्रोण ब्राह्मण का प्रागमन । कृपाचार्य द्वारा शान्तनुपुत्र से मेल । पाण्डवों का द्रोण द्वारा प्रशिक्षण व प्रसिद्धि । समीपवर्ती वन में क्षीरकदम्ब भिल्ल । २. क्षीरकदम्ब द्वारा लेप्य पिंडमय द्रोण की पूजा व धनुर्विद्याम्यास । शब्दवेध व राधाचंद्रवेध का ज्ञान । अर्जुनादि पाण्डव कुमारों का उस वन में प्रागमन क्षीरकदम्ब द्वारा उनके श्वान के मुख में बाण विसर्जन । अर्जुन का विस्मय । ३. भिल्ल से भेंट । गुरु का नाम द्रोण तथा अपनी शस्त्रविद्या का प्रकाशन । अर्जुन ने उसे अपने से भी अधिक विद्यावान् समझा । ४. अर्जुन ने इसे गुरु का अपने प्रति द्रोह समझा । गुरुसमीप गमन । द्रोण का अस्वीकार । क्षीरकदम्ब के पास आगमन व प्रश्न । ५. भिल्ल द्वारा गुरु की लेप्य प्रतिमा का प्रदर्शन । ६. द्रोण भक्ति की प्रशंसा। गुरु जानकर क्षीरकदम्ब का प्रणाम । गुरुदक्षिणा की माँग व दाहिने हाथ के अंगूठे का दान । धनंजय की तुष्टि । विनय द्वारा चाप विद्या की सिद्धि । भक्ति का माहात्म्य । ७. भक्ति के माहात्म्य पर पद्मरथ की कथा । भारतवर्ष, विजय देश, पृथिवीतिलकपुर, प्रजापाल नरेश, सूरदत्त सेठ के सात पुत्र । सबसे छोटा पुत्र धन्वन्तरि, उसका प्रिय मित्र ब्राह्मण । दोनों दुर्व्यसनी चोर । कुटुंब द्वारा त्यक्त । हस्तिनापुर प्रागमन । यमदंड आरक्षक के घर निवास । ८. चौरवृत्ति । वणिक पुत्र द्वारा जीववध के त्याग व पंचनमनस्कार मंत्र का ग्रहण । चोरी हेतु गमन । अपशकुन निवारणार्थ नाटक प्रेक्षण । गृहागमन । माता को वधू के साथ सोती देख सन्देह । मारने के लिये कृपाण-कर्षण । गुरुवचन का स्मरण । सीके पर प्रहार । 'भांड-पतन, माता की निद्रा भग्न । व्रत का प्रभाव जानकर दोनों मित्रों की धर्म-रुचि । दीक्षा का विचार । १०. माता और पत्नी का मित्र के साथ गृह-प्रेषण । इधर धवन्तरि का तप ग्रहण व शास्त्राभ्यास । विश्वानुलोम द्विज का आगमन । मित्र को मौन पाकर सहस्रजटी तपस्वी का शिष्यत्व ग्रहण । २३३ २३५ २३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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