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________________ ( ५८ ) २२२ २२३ २२३ २२४ अन्य किसी के न वेध सकने पर अर्ककीर्ति को प्रादेश व उसके द्वारा वेधन तथा जयमती प्रादि कन्याओं का वरण । सोते हुए चित्रलेखा विद्याधरी द्वारा अपहरण । विजयार्द्ध के शिखर पर सिद्ध कूट मन्दिर में छोड़कर विकट दन्त विद्याधर को समाचार १२. इधर कुमार की उठकर वंदना । वज्रकपाटों का खुलना । विकटदंत का आगमन व वृत्तान्त कथन । प्रभ्रपुर में पवनवेग विद्याधर की वीतशोका पुत्री । मुनि का वचन जिसके प्राने पर मंदिर के वज्रकपाट स्वयं खुलेंगे, वही उसका पति होगा । कुमार को लेकर विद्याधर का गमन । १३. उत्सव पूर्वक कुमार का नगर-प्रवेश । वीतशोका व अन्य इकतीस कन्याओं का विवाह । पांच वर्ष रहकर गृह की ओर प्रस्थान । मंजनागिरि नगर, प्रभंजन, भूपति, नीलांजना देवी, मदना, कनका आदि पाठ पुत्रियां । उद्यान गमन । नीलगिरि हाथी का स्तंभ भंगकर भागना । जन कोलाहल । कुमार द्वारा हाथी का वशीकरण व कन्याओं का परिणय । पुंडरीकिनीपुर गमन व अनेक आश्चर्य प्रदर्शन और बल-संचय । राजा से संग्राम । नामांकित बाण का प्रेषण । पिता-पुत्र की पहिचान व आलिंगन। १५. उत्सव सहित पुत्र-प्रवेश । उल्कापतन देखकर दीक्षा-ग्रहण व निर्वाण प्राप्ति । इन्द्रधनुष की अनित्यता देखकर अर्ककीर्ति को वैराग्य । पुत्र विमलकीति को राज्य देकर दीक्षा व स्वर्गगमन । वह वणिकपुत्री दुर्गन्धा रोहिणी उपवास के फल से तुम्हारी (अर्ककीर्तिकी) महादेवी हुई। तुम्ही अर्ककीर्ति वीतशोक नरेश की पत्नी विद्युत्प्रभा से उत्पन्न प्रशोक नामक राजपुत्र हुए। महादेवी अंगदेश में चंपापुरी के राजा मघवंत की कन्या रोहिणी। पुत्रों के जन्म वृत्तान्त । मथुरापुरी, श्रीधर राजा, अग्निशर्मा पुरोहित व उसके सात पुत्र । पाटलिपुत्र प्रागमन । सुप्रतिष्ठ राजा का पुत्र सिंहरथ । १७. विगतशोक (वीतशोक) नरेश द्वारा राजपुत्री कमला का सिंहरथ को दान । विप्रसुतों को वैराग्य व मुनि-दीक्षा। स्वर्गवास व तुम्हारे (अशोक के) पुत्रों के के रूप में जन्म । पूर्वकाल का भल्लावक नामक विद्याधर पिहितास्रव मुनि के समीप ब्रह्मचारी हो गया। वही मरकर तुम्हारा (अशोक का) लोकपाल नामक पुत्र हुआ। चारों पुत्रियों के पूर्वजन्म । पूर्व विदेह, विजयार्द्ध की दक्षिण श्रेणी अलकापुरी। गरुणवेग प्रभु, कमलादेवी की कमलश्री आदि चार पुत्रियाँ । क्रीड़ा हेतु उपवन-गमन । सुव्रतसूरि के दर्शन । मुनि से प्रश्न-उपवास का स्वरूप व फल । पारमाथिक और व्यावहारिक इन दो प्रकारों के उपवास । अन्य धर्मों में उपवास का प्रमाण । उपवास का फल -पाप का शोधन व सुरासुर आदि का वशीकरण तथा मंत्रसिद्धि । पंचमी उपवास का स्वरूप और फल । २१. कुमारियों का पंचमी उपवास व्रत । स्वर्गवास व तुम्हारी (अशोक की) पुत्रियों २२४ १६. २२५ २२५ २२६ २२६ २२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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