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________________ २१. पाप से मुक्ति का उपाय बतलाया गया रोहिणी उपवास । उसकी विधि । २२. उपवास की उद्यमन विधि । फल-उत्तम कुल में जन्म । ___ २१५ २१५ पृष्ठ २१७ २१७ २१८ २१८ संधि-२० कडवक १-साधु द्वारा रोहिणीव्रत माहात्म्य की कथा । भारतवर्ष, संकट विषय, सिंहपुर नरेश जयसेन । कनक प्रभादेवी का पुत्र दुर्गन्ध । नभ में असुरकुमार को देखकर पूर्वभवस्मरण व मूर्छा । सचेत होने पर पिता द्वारा मूर्छा के कारण का प्रश्न । २. कारण न बतलाने पर केवली के समीप गमन । पूर्वभव में मुनिवध के कारण दुखःपरम्परा । कलिंग देश, विन्ध्यपर्वत का महाशोक वन । ३. वहां ताम्रकृति और श्वेतकृति नामक दो गजेन्द्र । परस्पर युद्ध में दोनों मृत । पश्चात् परस्पर वैरयुक्त मूषक-मार्जार, अहि-नुकल, काक-श्येन प्रादि रूपों में जन्म । फिर दोनों का कनकपुर के पुरोहित सोमभूति के सोमशर्मा और सोमदत्त नामक पुत्र होना । उनकी क्रमशः सुकांता और लक्ष्मीमती नामक पत्नियां । पिता की मृत्यु पर लघु भ्राता का राजपुरोहित होना। ४. एक दिन भावज ने सोमशर्मा के दुराचार की बात कही । सोमदत्त का छिपकर स्वयं देखना व विरक्ति से मुनि-दीक्षा लेना । सोमशर्मा को पुरोहित पद । ५. शकट देश के राजा द्वारा त्रैलोक्य सुन्दर हाथी की मांग । न देने पर प्राक्रमण । सोमदत्त मुनि का वहीं बिहार । सोमशर्मा की इसे अपशकुन बताकर मुनि को मरवा डालने की राजा को सलाह । विश्वदेव विप्र द्वारा विरोध ६. मुनिदर्शन शुभ शकुन के पक्ष में शास्त्रप्रमाण । प्रातः मगध नरेश द्वारा हस्ति समर्पण । रात्रि में सोमशर्मा द्वारा सोमदत्त मुनि का वध । राजा द्वारा वधक को पिटवाकर निर्वासन । कुष्ठ-व्याधि । मरकर नरक गमन । सोमशर्मा नरक से निकल कर समुद्र में तिमिगिल मत्स्य हुप्रा । फिर सिंह सपं, भेरुंड व बक पक्षी होकर अन्त में यह तेरा पुत्र दुर्गन्ध हुआ है। रोहिणी उपवास के पुण्य से दुर्गन्ध सुगंध हो गयी। ८. राज्य किया। फिर अपने पुत्र श्री विजय को राज्य देकर तप और स्वर्ग गमन । फिर पूर्वविदेह क्षेत्र की पुंडरीक नगरी के राजा विमलकीर्ति का दिवाकर कीर्ति नामक पुत्र । मित्र मेघसेन । उत्तर मथुरा के सेठ सागरदत्त का पुत्र सुमन्दिर । ६. दक्षिणमथुरा के नन्दिमित्र वणिक् की दो कन्यामों का सुमन्दिर से विवाह । रविकीर्ति (दिवाकरकीर्ति) का पहुंचना व नवोढानों का अपहरण । नागरिकों द्वारा मनाकर पुनरावर्तन । रविकीर्ति के पिता ने सुना । रविकीति का मित्र सहित निर्वासन । वीतशोक नगर जाना। वहां के राजा विमलवाहन की जयमती आदि पाठ पुत्रियां। १०. नैमित्तिक की भविष्यवाणी, जो चन्द्रकवेध करेगा वही जयमती का पति होगा। चन्द्रकवेध की स्थापना। २१६ २१६ २२० २२० २२१ २२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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