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________________ १४६ १६. कुमार संध्या के समय रथ से लटकता हुअा राजगृह पहुंचा। पुत्र को पहचान कर राजा का हर्ष । उसे पुनः कांचीपुर भेजकर दोनों पत्नियों का प्रानयन । दूसरा प्रसंग । सिंधुदेश, वैशाली पुरी, कौशिक राजा व यशोमती रानी का पुत्र चेटक राजा व सुभद्रा रानी, सात पुत्रियाँ-प्रियकारिणी, सुप्रभा, प्रभावती, मृगावती, ज्येष्ठा, चन्दना और चेलना। १७. राजा की वासगृह में चित्र लिखाने की इच्छा । कलाकार कोकास द्वारा स्त्री का चित्रलेखन । चित्रभूति चित्रकार का आगमन व कोकास से मेल । अनेक पाश्चर्य, राजा का आमंत्रण । १८. राजादेश से चित्रभूति द्वारा महादेवी व कन्याओं के चित्रलेखन । चेलना के गुह्यस्थान पर मसि-बिन्दु । राजा का रोष । चित्रकार का पलायन व राजगृह आगमन, श्रणिक को चेलना का चित्र प्रदर्शन । कन्या का परिचय । १६. अपने पलायन का कारण वर्णन । कन्या के रूप की प्रशंसा । २०. राजा का अनुराग व मंत्रणा। किसी बुद्धिमान को भेजकर राजकन्या को भुलाकर ले पाने की सम्मति । २१. राजा का चित्रपट लेकर, व्यापारी के वेष में वैशाली गमन । चेटक राजा द्वारा सम्मान व निवास दान । वोट वणिक् के नाम से क्रय-विक्रय । २२. प्रसिद्धि । चेलना को चित्रपट का समाचार । कौतुक वश आगमन व चित्र देखकर अनुराग । प्रिय के पास ले चलने का आग्रह । २३. कुमार द्वारा राजकुमारी के भवन तक सुरंग निर्माण । रात्रि में ज्येष्ठा और चेलना का बहिर्गमन । भूली हुई जिन-प्रतिमा व रत्न पट्टिका लाने के बहाने ज्येष्ठा को लौटाना। २४. अभयकुमार का चेलना को लेकर पलायन । ज्येष्ठा का नैराश्य व तप-ग्रहण । २५. श्रेणिक की प्रसन्नता व चेलना से विवाह । १४७ १४८ 68 १५० १५० १५० पृष्ठ १५२ १५२ संधि-१३ कडवक १. चेलना के वारिसेन नामक व महादेवी के कूगिक नामक पुत्र का जन्म । राजा राजा द्वारा अपने वैष्णव गुरुपों (भगवों) को आमंत्रण । २. चेलना द्वारा साधुओं का स्वागत व तपाये हुए पट्टों पर आसन । साधुनों का पलायन । राजा को रोष । चेलना द्वारा उदाहरण । कौशाम्बी पुरी, प्रजापाल राज्य, यशोमती महादेवी, सागरदत्त वणिक् वसुमति गृहिणी, दूसरा वणिक् समुद्रदत्त, पत्नी समुद्रदत्ता। दोनों वणिकों की मैत्री।। ४. सागरदत्त का प्रस्ताव-यदि उनके पुत्र-पुत्री का जन्म हो तो परस्पर विवाह । सागरदत्त के भुजंग का जन्म । समुद्रदत्त की नागदत्ता कन्या । परस्पर विवाह नागदत्ता का माता से कथन कि उसका पति रात्रि को पुरुष वेष में रहता है, किन्तु दिन में सर्प बनकर पिटारी में बन्द रहता है । माता का आश्वासन । १५३ १५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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