SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४० १४१ १४२ ५. मार्ग में हरा भरा खेत देखकर प्रश्न-खेत खा लिया गया, खाया जा रहा है या खाया जायगा । इस बेर के वृक्ष में कितने कांटे हैं ? यह भैसों को क्यों पीटता है ? यह वधू जो पीटी जा रही है, वह बद्ध है कि मुक्त ? राजकुमार का वृक्ष के नीचे छात्र धारण, पानी में चलने पर पनही धारण । राजकुमार के इन प्रश्नों व ऐसी क्रियाओं से विप्र की हैरानी । राजकुमार को कांचीपुर के बाहर छोड़ विप्र का अपने घर गमन । पुत्री अभयमती का साथी के विषय में प्रश्न । ६. भट्ट द्वारा राजपुत्र को पागल बतलाते हुए उस के प्रश्नों व क्रियाओं का वृत्तान्त । कन्या द्वारा उनका युक्तियुक्त समाधान । ७. कन्या का उस बुद्धिमान युवक को घर लाने का प्रस्ताव । युवक कीचड़ के मार्ग से लाया गया व कटोरे भर मात्र जल पैर धोने के लिए दिया गया । उससे भी कम जल में राजकुमार का पाद-प्रक्षालन । कन्या की उसे वरण करने की इच्छा। ८. दोनों का विवाह । अभयकुमार पुत्र की उत्पत्ति । परदेश से वसुपाल नरेश का मंत्री को एक स्तंभ प्रासाद बनवाने का आदेश । विज्ञानियों का सम्मेलन । ६.. चित्रपट देखकर भी एक स्तंभ प्रासाद बनवाने में अपने असामर्थ्य का स्वीकार । सोमशर्मा की चिन्ता । जामाता द्वारा निर्माण । राजा का पुनरागमन व प्रासाद देखकर संतोष । १०. श्रेणिक से राजपुत्री वसुमित्रा का विवाह । उधर उपश्रेणिक द्वारा चिलात पुत्र को राज्य समर्पण । उसकी अनीति । मंत्रियों द्वारा श्रेणिक की खोज व पत्र-प्रेषण व राज्य निमित आमंत्रण । ११. श्रेणिक का राजगृह प्रागमन व चिलातपुत्र को च्युत कर राज्य ग्रहण । इधर कांचीपुर में अभयकुमार का माता से पिता के विषय में प्रश्न व वृत्तान्त जानकर प्रस्थान तथा नन्दिग्राम में प्रागमन । वहां सब द्विजों को उदास चित्त देख प्रश्न । १२. द्विजों द्वारा अपना परिचय-श्रेणिक नरेश के अग्निहोत्री । राजा का कारण रोष व मादेश कि तुम्हारे ग्राम का कूप बहुत अच्छा है । उसे हमारे पास भेजो। अभयकुमार का धैर्यदान ।। १३. अभयकुमार द्वारा राजा को समुचित उत्तर प्रेषण । कूप से जाने को कहा, किन्तु नहीं जाता । उसके आकर्षण के लिये किसी सुन्दरी को भेजा जाय, क्योंकि नारी से पुरुष का वशीकरण है । इस संदेश से राजा नित्तर। १४. राजा का दूसरा आदेश-हाथी को कैसे तौला जाय । कुमार ने हाथी को नौका में चढ़ाया व जितनी नौका पानी में डूबी उतने पत्थर भरकर उन्हें तौलकर हाथी की तौल बतला दी। राजा का तीसरा आदेश-प्रचुर जलयुक्त कूप को ग्राम के पूर्व से पश्चिम दिशा में करो। १५. कुमार ने ग्राम को कूप की पूर्व दिशा में बसा दिया। राजा का प्राश्चर्य । कोई नया विद्वान ग्राम में पाया है, जानकर आदेश-परदेशी को जब दिन हो न रात्रि, न भूमि न आकाश मार्ग से तुरंत हमारे पास भेजा जाय । १४४ १४४ १४५ १४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy