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( ४५ ) १७. नागदत्त का जैन धर्म स्वीकार करना । रुद्रदत्त का जिनमती से विवाह । रुद्रदत्त
द्वारा शैव धर्म ग्रहण करने का प्रस्ताव । जिनमती की अस्वीकृति । रुद्रदत्त का आग्रह । जिनमती का प्रस्ताव कि दोनों अपना-अपना धर्म पालन
करें। रुद्रदत्त का पुनः वही हठ । जिनमती की दृढ़ता । १६. प्रति-पत्नी का इसी विषय पर विवाद और कलह एवं परस्पर धमकी व
अपने-अपने प्रस्ताव । भिल्लों द्वारा नगर पर आक्रमण । २०. पुर में अग्नि-प्रकोप व रुद्रदत्त के घर तक अग्नि का प्रवेश । जिनमती का पति
से प्रस्ताव कि जो देव इस उपसर्ग से रक्षा करे उसी को पूज्य माना जाय । २१. प्रथम रुद्रदत्त द्वारा अपने इष्ट देव की आराधना व त्राण की प्रार्थना । किन्तु
अग्नि की वृद्धि व निर्गमन मार्ग भी भग्न । २२. रुद्रदत्त द्वारा हरि, कमलासन, इन्द्र, चन्द्र प्रादि देवों का स्मरण व अर्धांजलि ।
तो भी अग्नि प्रकोप की निरन्तर वृद्धि । नागदत्त द्वारा जिनमती से अपने
देव को अर्घ देने का प्राग्रह । २३. जिनमती द्वारा परहंत देव का अाराधन । शासन देवी द्वारा अग्नि का उप
शमन । सबका जैनधर्म स्वीकरण ।
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संधि-१२ कडवक १. शुद्ध सम्यक्त्व से तीर्थकरत्व की प्राप्ति पर श्रेणिक चरित्र । जंबूद्वीप, भरत क्षत्र,
मगध देश, राजगृह पुर, उपश्रेणिक राजा, सुप्रभा रानी, श्रेणिक राजकुमार, पूर्ववैरी सीमान्त नरेश अभिधर्म द्वारा प्रेषित दुष्ट अश्व । राजा की सवारी। भीषण वन में अपहरण । किरातराज द्वारा सम्मान व अपनी पुत्री तिलकावती का
परिणयन इस प्रतिज्ञा सहित कि उसी का पुत्र सजा होगा। नगरागमन । २. कुमार चिलातपुत्र की उत्पत्ति । राजा का नैमित्तिक से प्रश्न-कौन उसका
उत्तराधिकारी होगा? उत्तर-जो सिंहासन पर बैठकर भेरी बजाता हुआ, कुत्तों को चातुरी से सम्हालता हुआ पायस का भोजन करेगा, वही उत्तराधिकारी होगा। राजा द्वारा पांच सौ राजकुमारों की परीक्षा । नाना प्रकार के वरदान । श्रेणिक की मांग । सिंहासन पर बैठकर भेरी बजाना। पायस भोजन । श्वानों का छोड़ा जाना । राजकुमारों का पलायन । श्रेणिक उन्हें भी थोड़ा खिलाता हुआ स्थिर । भूपाल के मन में निश्चय । किन्तु दायादों के भय से कुत्तों के साथ भोजन के विटाल का दोष लगाकर नगर से निष्कासन । राजकुमार का नन्द ग्राम में प्रवेश । नन्दग्राम के विप्रों द्वारा भी निष्कासन और परिव्राजकों के मठ में प्रवेश । बौद्धधर्म में दीक्षित । वहां से दक्षिण देश गमन । गंगास्नान से लौटते हुए कांचीपुर के राजमंत्री इन्द्रदत्त से मेल । राजपुत्र का कंधे पर बैठने अथवा बिठलाने का प्रस्ताव । इन्द्रदत्त को भ्रांति ।
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