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हुआ। कोई अन्य भी ऐसा धर्मोपदेशक है, ऐसा पूछने पर साधु ने कहा, चम्पापुर में वासुपूज्य तीर्थंकर हैं, जिनकी वाणी त्रिभुवन पूज्य है । पद्मरथ ससैन्य वासुपूज्य तीर्थंकर की वन्दना को चला। उसकी परीक्षा निमित्त अमितप्रभ और विद्युत्प्रभ देवों का आगमन । पहले उन्होंने यमदग्नि को अपने
संयम से चलायमान किया। फिर जैनधर्मानुराग की परीक्षा करनी चाही। ६. विद्युत्प्रभ ने मिथिला नगर का दाह व घरद्वारों का ध्वंस आदि मायाजाल
दिखलाया। फिर भी पद्मरथ नहीं लौटा । देव द्वारा प्रशंसा । राजा द्वारा तीर्थकर की वन्दना । मुनि-दीक्षा, गणधर पद व मोक्ष प्राप्ति । दर्शनभ्रंश पर ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती का पाख्यान : अरिष्ट नेमि का तीर्थ, काम्पिल्य पुरी, राजा ब्रह्मरथ, महादेवी सोमिल्ला, पुत्र ब्रह्मदत्त बारहवां चक्रवर्ती, चक्रवर्ती विभूति । तप्त खीर से दग्ध । रसोइये पर रोष । उबलती खीर से उसका स्नान । मरकर लवण समुद्र में राक्षस । पूर्व वैर स्मरण । वैष्णव के वेष में फल लेकर आगमन । राजा का फल भक्षण
और प्रश्न । अपने आश्रम में उनके प्राचुर्य का कथन । राजा का समुद्र के बीच प्राश्रम को गमन । उपसर्ग व पूर्व वैर को स्मरण कराना । राजा मंत्री,
व सामन्त पाहार-त्याग कर सन्यास में स्थित ।। १२. नवकारमंत्र स्मरण के कारण राक्षस राजा को मारने में असमर्थ । राक्षस
का प्रस्ताव--यदि जैन धर्म त्याग कर पंचाक्षर मंत्र को पैर से पोंछ दे तो अभयदान । भयभीत होकर राजा के वैसा करने पर राक्षस द्वारा घात व
रसातल के बड़वानल में प्रक्षेप व सप्तम नरक गमन । १३. दर्शन में दृढ़ता पर जिनदास का आख्यान । पाटलिपुर, जिनदास वणिक
जिनभक्त । वाणिज्य निमित्त भांड लेकर कंचनद्वीप गमन । द्रव्योपार्जन कर लौटते समय पूर्व वैरी कालियदेह द्वारा प्रचंड वायु एवं सधन बादल निर्माण व यह कथन कि जीवन चाहो तो जैनधर्म छोड़ो। जिनदास की निश्चलता। जिनदास की धर्मनिष्ठा से अणावि यक्ष का प्रासन कंपायमान । यक्ष के द्वारा शत्रु के सिर पर प्रहार व वड़वामुख में क्षेपण । वरुण देव द्वारा वणिक के पोत की रक्षा। लक्ष्मी का कलश लेकर प्रागमन। देवों द्वारा
सम्मान । घर आकर सेठ का मुनिराज से उपसर्गकारी के विषय में प्रश्न । १५. मुनि का कथन । हस्तिनापुर में अग्निभूति विप्र। उसका वाद में तुम्हारे
द्वारा पराजय । राजा द्वारा निष्कासन । अपमान का रोष । कालियदेह राक्षस के रूप में जन्म । पूर्व वैर स्मरण कर उपसर्ग । मुनि का यह कथन सुनकर सबकी धर्म में रुचि । जिनदास की प्रव्रज्या। दर्शन का पालन न करने का रुद्रदत्त का पाल्यान । लाट देश, द्रोणिमान पर्वत के समीप गोद्रहपुरी, जिनदत्त वणिक, पत्नी जिनदत्ता, पुत्री जिनमती । दूसरा वणिक् नागदत्त परम माहेश्वर, पुत्र रुद्रदत्त। उसके विवाह हेतु जिनमती की मांग। धर्म भेद होने के कारण जिनदत्त द्वारा प्रस्ताव अस्वीकार ।।
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