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________________ ( ४३ ) १५. मंत्री का बलपूर्वक सभा में प्रानयन व राजा द्वारा गत दिवस की घटनाओं को स्मरण करना। मंत्री द्वारा सत्य को छिपाना व कहना कि मैंने कुछ नहीं देखा। इस असत्य भाषण से मंत्री की आँखों के मणियों का भूमि पर पड़ना व व प्रासन से नीचे गिरना । १६. पुनः पूछे जाने पर भी असत्य का त्याग न करने से पृथ्वी फट गई और मंत्री मरकर महानरक को गया। उसके वंशजों का अब तक भी जात्यंध होना। इस प्राश्चर्य से लोगों की धर्मरुचि । राजा का वैराग्य व तप । १२४ १२५ पृष्ठ १२६ १२६ १२७ संधि-११ कडवक १. धर्म में अनुराग के चार भेद, भावानुराग, प्रेमानुराग, मज्जानुराग और धर्मानुराग । भावानुराग पर सागरदत्त की कथा । उज्जयिनी पुरी, सागरदत्त सेठ प्रिंयगुश्री पत्नी, जिसका पहले नागसेन से वाग्दान हो चुका था। सागरदत्त का जिनालय में उपवास । नागसेन का प्रागमन, रोष, बदला लेने हेतु अपना हार उसे पहनाकर चोरी-चोरी की पुकार, अधिकारी से निवेदन और हार देखकर राजा से निवेदन। २. राजा द्वारा प्राणदंड का आदेश । तलवर का प्रहार मणिहार बना । देवों द्वारा पुष्पवृष्टि । यह आश्चर्य देख लोगों में धर्मानुराग की उत्पत्ति । ३. प्रेमानुराग पर द्रव्यदत्त का पाख्यान । विनीता जनपद, अयोध्यापुर, सुवर्णधर्म राजा, सुवर्णलक्ष्मी रानी, द्रव्यदत्त वणिक् का चतुर्दशी उपवास में ध्यान योग । पूर्व वैरानुबन्धी देव द्वारा उपसर्ग । सेठ की निष्कंपता से संतुष्ट देव द्वारा पूजा व नभोगामिनी विद्या का दान । यह आश्चर्य देख राजा का वैराग्य । मज्जानुराग पर जिनदत्त-वसुदत्त का आल्यान । उज्जयिनी नगरी, जिनदत्त और वसुदत्त भ्राता, सार्थ में मिलकर व्यापार निमित्त उत्तरापथ गमन । वन में म्लेच्छों द्वारा सार्थ की लूट । दोनों भ्राता लुटकर संसार से विरक्त व जिनशासन में अस्थि-मज्जानुराग से रक्त । सोमशर्मा द्विज भी लुटकर सन्यास में स्थिर होकर पिपीलिकाओं का उपसर्ग सह, मरकर ब्रह्मलोक गया। ५. धर्मानुराग पर लकुचकुमार का पाख्यान । उज्जयिनी नगरी, धनवर्मा नरेश, लकुच राजकुमार, सीमावर्ती कालमेल म्लेच्छ द्वारा अाक्रमण । लकुच कुमार द्वारा पराजित और बन्दी। राजा द्वारा कुमार का अभिनन्दन। ६. कुमार को पंगुल सेठ की पत्नी नागवर्मा पर आसक्ति । एक दिन मुनि दर्शन । धर्मश्रवण और मुनिचारित्र ग्रहण । विहार व पुन: नगरागमन । महाकाल उद्यान में प्रतिमा योग । पंगुल सेठ द्वारा पूर्व वैर स्मरण कर लकुच मुनि को लोहशलाकाओं द्वारा बाधा । धर्मानुराग सहित उपसर्ग सहकर स्वर्ग-गमन । ७. मिनभक्ति पर पद्मरथ नृपाख्यान । मिथिला नगर का पद्मरथ राजा शत्रु का ___ दमन करने सूर्यप्रभ-पट्टन गया। वहाँ सुधर्म मुनीन्द्र के उपदेश से श्रावक १२७ १२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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