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समुद्रदत्ता का पुत्री के घर गमन । पुरुष बनकर प्रिया के पास जाने पर उसकी पिटारी का दमन व भुजंग का सर्वकाल पुरुष रूप रह जाना । तदनुसार भगवों के मिथ्या रूप का दहन कर उनके सत्स्वरूप के प्रकटन के लिये उसका वह प्रयास | यह उत्तर पाकर राजा का मौन । एक दिन राजा का प्राखेट गमन । यशोधर मुनि का प्रतिमायोग में दर्शन । इसे अपशकुन समझना ।
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६.
राजा का मुनि पर पाँच सौ कुत्ते छोड़ना । मुनि माहात्म्य से उनका उपशमन । राजा की बाणवृष्टि । उसका भी पुष्पवृष्टि में परिवर्तन। फिर मुनि के गले में मृत सर्प का डालना व सप्तम नरक की आयु बाँधना । उपर्युक्त श्राश्चर्य देखकर राजा का विनय व मुनि का आशीर्वाद ।
श्रेणिक की जैन शासन में श्रद्धावृद्धि । सभा में वनमाली द्वारा महावीर तीर्थंकर
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८.
आगमन का समाचार ।
ε.
राजा का विनय व वन्दना के लिए प्रस्थान ।
१०. विपुलगिरि की शोभा व उस पर समवसरण का दर्शन ।
११.
१२.
समवसरण के विस्तार, तोरण, प्राकार, मानस्तंभ, सोपान, उपवन आदि का वर्णन । समवसरण के द्वारों, प्रतिहारों, नृत्यों, धूपधरों केलिगृहों, नन्दनवनों अशोकवृक्ष का वर्णन |
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चार गोपुरों, वन वेदिका, ध्वजाओं व प्राकार का वर्णन । १४. प्रतिहारों, नृत्यगृहों, कल्पवृक्षों, प्रासादों,
का वर्णन |
१५. सोलह भित्तियों, मणिमंडप, सोलह सोपानयुक्त पीठ, धर्मचक्रों पीठ, चक्रध्वज आदि का वर्णन ।
तोरणों, सभाश्रों व द्वारपालों
१६. अरहंत के ऊपर देवों द्वारा पुष्पवृष्टि, चौंसठ यज्ञों द्वारा चमर चालन, उनकी दिव्यवाणी, सर्वजीव मैत्री आदि का वर्णन ।
१७. पीठत्रय, भद्रासन व उस पर विराजमान तीर्थंकर का वर्णन ।
कडवक
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२.
१८. स्तंभों, स्तूपों, वेदियों का प्रमाण, बारह कोठों एवं जयध्वनि का वर्णन व राजा का वहाँ पहुचकर जिनेन्द्र दर्शन ।
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युक्त यक्षों, सुवर्ण
संधि-- १४
श्रेणिक द्वारा तीर्थंकर महावीर की स्तुति ।
राजा की मुनिवन्दना व तीर्थंकर के धर्मोपदेश का श्रवण । दो प्रकार के जीव, तीन काल, शल्य, रत्न, गति, गारव, गुण, गुप्ति, जगत, योग, वेद, मरुत् व मूढ़ता, चार संज्ञा, बन्ध, कषाय, श्राराधना आदि क्रम से, आठ कर्म, भय और मद तक ।
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नव ब्रह्मचर्य, पदार्थ, ग्रह, नय और पदार्थ से लेकर सोलह स्वर्ग, कषाय व
भावना तक ।
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