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________________ ५१० एउ सुणेपिणु कावें भणियउ पण बंभणु तं ण खणिज्जइ सो नउ निच्छएण मारिज्जइ तेण खणंतु मुयमि तावन्नउ अन्नु न एवंविहु मइँ जाणिउ एँ होंतेण कज्जु पाविज्जड़ चितेपिणु गंषि विसाल हो चाणक्केण कयाइ निएप्पिणु शक्यमेकसहस्रेण नीतिशास्त्रविशारद । व्यवसायद्वितीयेन जेतुमेनां वसुंधराम् ॥ निप्रवि एउ आदिउ मइवरु नाउ जा ता निसिह घिवाविउ लइया ते प्राणदिय मइयप्र ary कुडुंब एत्तिउ किज्जउ सिरिचंदविरइयउ १४ Jain Education International घत्ता - केमवि पटु जाविउ पुणु तेण वि निसुणेपिणु चारु सामिय सुरहिलक्खु जइ दिज्जइ श्रवणीयइणा मंति पउत्तउ ता लहु तेक्क्क पहाणा सहुँ चाणक्कु तेहिँ पइसारिउ सो वि सव्व गप्पणु सोत्तिय उवयरणहिँ अहिमाणें जेट्ठउ कावें मणे उवाउ परिभाविउ पभणइ नंदु विप्प विक्खाया एक्कहिँ वइसंरतु तुहुँ भव्वाइँ एम भगतएण रोसाविउ शक्यमे कशरीरेण नीतिशास्त्रविशारदे त्येवमादि । हो पुज्जइ छंडह बहु खणियउ । जं नउ मूलहो उप्पाडिज्जइ । जासु न सिरसमवत्तु लुइज्जइ । निम्मूलुक्खय कय जावन्नउ । प्रत्थि जयम्मि गोहु श्रहिमाणिउ । ५ निच्छउ नंदकुलवखउ किज्जइ । लिहिउ सिलोउ तेण दियसालहो । १५ [ ५०. १४. १ लिहियउ अन्नारिसउ करेष्पिणु । सइँ सभज्जु आमंतिउ दियवरु । दम्म सह पंग पुंजाविउ । भणिउ भट्टु भज्जइँ जसमइया । नाह नरिदपतिग्गहु लिज्जउ । जाणाविउ बंभणी मंतीस रहो । भणेप्पिणु दिन्नुवएसु नरेसरहो ॥ १४ ॥ १५ तो अमराविप पाविज्जइ । मेलावहि दिय देमि निरुत्तउ । मेलाविय बंभण वहुजाणा । सव्वपहाणासणे वइसारिउ । कुंडिय भिसिय मणेत्तिय छत्तिय । धेवि सव्वासणइँ वइट्ठउ । प्रकासु वि पासु भणाविउ । बंभण किं न नियच्छहि प्राया । थिउ सणइँ निरंभवि सव्वइँ प्राण तें एक्क्कु याविउ । For Private & Personal Use Only १० ५ १० www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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