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________________ कहकोसु ५०. १३. ११ ]. [ ५०१ तं पडिवन्नु वयणु पुहईसें संधिय ते धर्णण मंतीसें । १० वरिसे वरिस एक्केक्कउ दिज्जइ लक्ख सुवन्नो एम गमिज्जइ । घत्ता-इय जंतें कालें पुहईपालें भंडारिउ एक्कहिँ दियहे । पुच्छिउ अम्हारण भंडायारण केत्तिउ अत्थि हिरन्न कहे ।। ११ ।। कहिउ तेण सामिय उन्नइयहँ । कावें दिन्नु दव्वु मावइयहँ । किं चि वि अच्छइ एउ सुणेप्पिणु नंदनरेंदें सो रूसेप्पिणु । पट्टावि किंकर ल्हूसाविउ अंधकूर्व सकुडुंबु छुहाविउ । दिर्ण दिर्ण एक्केक्कउ पेसिज्जइ कूरसराउ सपाणिउ दिज्जइ । तं पेक्खेप्पिणु परिहवु पत्तइँ कावें नियमाणुसइँ पउत्तइँ । तुम्हहँ मझे नियागहो ढुक्कइ वइरहो वइरु करहुँ जो सक्कइ । भत्तसराउ एहु सो भक्खउ अप्पाणहो आउक्खउ रक्खउ । भुंजहि तुहुँ जि तेहिँ सो वुत्तउ अन्नु न बुद्धिवंतु छलइत्तउ । एम होउ भणिऊण खमेप्पिणु छिदु कराडिहे थिउ पइसेप्पिणु । तं आहारमेत्तु भुजंतउ जीविउ सो परेक्कु गयगत्तउ। १० घत्ता-विहिँ वरिसहिँ चम्मट्ठियसेसतणुट्ठिय हुउ चंडियवेयालु जणु । सुणेवि नत्थि बहुजाणउ मंतिपहाणउ चलिउ चोरु मावइयजण ।। १२ ।। आयनेवि जणवउ संताविउ कि किज्जइ नरिंदु चिताविउ । गुणु सुमरेप्पिणु भल्लउ भाविउ मन्नावेवि कावि कड्ढाविउ ।। किउ प्रारोयसरीरु पसत्यहिँ वेज्जहिँ दिन्नवरोसहिँ पहिँ । ता पुहईसरेण मंतीसरु भणिउ खमाविऊण मग्गहि वरु । तेण वि मग्गिउ मइँ परमत्थे तुह धणु नउ देवउँ सइँ हत्थें । ५ लद्धवरेण वियाणियमंतें पुत्तकलत्तसोयसिहितत्तें ।। अहनिसु नंदनामु चितंतें एक्कहिँ वासरे पुरबहि जंतें । दियडिहिँ सुइसत्थ भणंतउ दब्भसूइमूलाइँ खणंतउ । सुत्तकंठु चाणक्कु नियच्छिउ कि खणहु त्ति सविणएँ पुच्छिउ । घत्ता-बहुबुद्धिवियप्पें [भणिउ सदप्पें] एह वियारियपायतल। १० मइवर दुहदूइय दब्भहीं सूइय अच्छमि तेण खणंतु खल ॥ १३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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