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________________ ४६. ८. २ ] कहकोसु [ ४६५ होसहि तुहुँ कुसुमालु जहिं रक्ख करेवी मइँ वि तहिं ।। इय अन्नोन्नु पइज्ज किया विहिँ मि पढंतहिँ दिवस निया । घत्ता-एक्कहिँ दिर्ण निव्वेइउ देप्पिणु रज्जु महुँ । __ गउ जणेरु तवे संठिउ बहुनिवसुयहिँ सहुँ ।।५।। नियअहियारु समर्पवि प्रायो गउ जमपासु वि पंथें रायो । अच्छमि हउँ तहिँ रज्जु करंतउ एहु वि कोट्टवालु गुणवंतउ । सामिउ नवर निरिक्कू महारउ हउँ मि एत्थ परिपंथिनिवारउ । तेण न सोहणु एउ विचितेवि । गउ' महंतु महु के रउ मंतेवि । छड्डेवि नियअहियारु इहायउ निव तुह कोट्टवालु संजायउ। ५ हउँ वि एहु जोयंतु भमंत उ बहुकालेण एत्थु संपत्तउ।। एयहो बुद्धिविसेसु परिक्खि उ इय सयलु वि नियवइयरु अक्खिउ । आणिउ जहिँ थिउ हाराइउ धणु अप्पप्पणउ लेवि गउ तं जणु । बुज्झवि नियसससुउ अणुराएँ सम्माणिउ विज्जुच्चरु राएँ । नियनंदिणि नामें महलच्छिय भणिउ विवाहहि तेण कि नेच्छिय १० घत्ता-ता तहिँ सुद्धि लहेप्पिणु मंतीसरेण नरु । पेसिउ तेण वि एप्पिणु दिट्ठउ पहयपरु ।।६।। कहिउ सव्वु सामिय म चिरावहि तुरिउ पयत्तु करेप्पिणु आवहि । पइँ विणु कोइ वि एत्थ गुणालउ नत्थि समत्थु रज्जपरिपालउ । जो तुहासि होतउ अणुकूलउ सो संजाउ सव्वु पडिकूलउ । मंतिहिँ अप्पाइउ निसुणेप्पिणु पहु वामरहु मामु पुच्छेप्पिणु । कोट्टवालु जमदंडु लएप्पिणु जणमणहरु नियपट्टणु एप्पिणु। सयल विवक्ख सपक्ख करेप्पिणु नियनंदणहो रज्जु ढोएप्पिणु । रायसहासें सहुँ वणु गंपिणु गुणनिहि गुणधरसूरि नवेप्पिणु । विज्जुच्चरु दो दोस मुएप्पिणु हुउ संजउ जिणदिक्ख लएप्पिणु । घत्ता-सव्वसत्थनिम्मायउ जायउ संघधरु । महि विहरंतु पराइउ तामलित्ति नयरु ॥७॥ ५ १० पंचहिँ रिसिसएहिँ परियरियउ दुग्गादेविण पुरे पइसंतउ ६. १ भउ। गुणमंदिरु दूरीकयदुरियउ । वारिउ सवणसंधु पइसंतउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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