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________________ ४४. १६. २ ] - कहकोसु [ ४४५ नामेण नउलु तहिं वणितणउ जूयारिउ चोरियपरधणउ । आरक्खिएण दुन्नयभरिउ जाणेवि बंधेवि नेवि धरिउ । संजायउ जणि पवाउ गरुउ जिह नउलु हयासु चोरु विरुउ । तहो सुद्धिहेउ परिभावियउ पंचउले लोह तवावियउ। सो महिसु एवि संकाण तउ तं दियहिँ लेवि राउलहो गउ । १० पहुणा दळूण पसंसियउ जर्ण भद्दयनामु पयासियउ । हिंडंतु संतु लीलागमणु गउ एक्कहिँ दियह असोयवणु । घत्ता-तहिँ पुक्खरिणिहिँ विउलजले इच्छइँ कीलंतउ । जामच्छइ ता रायसुउ मियधउ संपत्तउ ॥१४।। १५ गाहा–नियसहयरेहिँ सहि पण तेण दळूण मंसलुद्धेण । सहसा पच्छिमपानों छिदेप्पिणु भक्खिदो तस्स ।। तिहिँ पायहिँ कहव कहव वियलु लंगंतु विणिग्गयरुहिरजलु। पुहईसपासे पीडग्र नडिउ जाएप्पिणु पारडेवि पडिउ । तेण वि तहो सन्नासेण वरा नवयार दिन्न तहो पावहरा । सहसत्ति समाहि लहेवि मुउ सोहम्मि महड्डिउ देउ हुउ । रूसेवि नरिंदें ता सुतउ मारहुँ संपेसिउ मंति गउ । उवइठ्ठ कज्जु किं कय कुमइ एवहिँ को धरइ कुविउ निवइ । इय कहेवि तेण रायही तणउ लेवाविउ तउ सुउ अप्पणउ । तक्खणे निक्खवियकम्मरयहो' केवलु उप्पन्न मियद्धयहो।। गउ राउलु मंति नियच्छियउ मारिय ते पहुणा पुच्छियउ । तेणुत्तु सुमारियविसयरई छड्डाविय ते मइँ जाय जई। हुउ केवलि तुह सुउ सक्कथुउ महु सुउ मणपज्जवनाणजुउ । घत्ता-आयनेवि नरिंदु तहिँ गउ गंजोल्लियमणु । पुरउ निविठ्ठ नवेवि पय जगगुरुहे सपरियणु ।।१५।। १५ गाहा--एत्थंतरे हिरामो फुरंतकेऊरकुण्डालाहरणो । दिव्वविमाणारूढो महिसयदेवो वि तत्थाओ ।। १ कयरयहो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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