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________________ ४४. १२. ५ ], माया वि सव्वदोसहँ निलया मायाइँ जीव दुक्खइँ सहइ तिरियंचु नउंसउ थी हवइ इह भरहि भरहगामहो तणउ जूरिउ मायादोसेण जणु चंपार्ह समीवइ नाइ पुरु अहिमाणु न मुयइ मुएवि छलु सो भरेवि वसहु घर नत्थि वो कहकोसु [ ४४३ अविसासयरी पयणियपलया। न कयाइ वि उच्चगोत्तु लहइ । भवि भवि वंचिज्जइ दुटुमइ । अयणाइँ चउद्दह घणघणउ । निड्डहिउ कुलाले सयलु कणु । वडगामु अस्थि धणकणपउरु । तहिँ वसइ पयावइ सीहबलु । विक्कहुँ भंडाइँ कयाइ गयो। १० घत्ता-चलइ न वीसत्थउ वसहु वासरु अइकंतउ । रविअत्थवणसमग्र भरहगामे संपत्तउ ।।१०।। ११ ५ गाहा--भंडाणि तत्थ थविऊण देउले बंधिऊण गोणं च । जामच्छइ खणमेकं ता महिलामो समायाप्रो ।। दे देहि विहाणण देहुँ धणु अन्नोन्नु कहेवि तासु भवणु । पाविट्ठउ परवंचणरयउ भंडाइँ लएवि ताउ गयउ । चोराउलु गामु नव्वससिहे जग्गंतु सइत्तउ थिउ निसिहे । ता गामजुवाणा कइ वि जणे संपत्त धुत्त वंचणपवणे। दुक्करिउ कहंता लोयपिया। सह तेण गंत नच्चंत थिया । अवरहिँ आवेप्पिणु कोणथिउ फोडेप्पिणु भित्ति बइल्लु निउ । किं किज्जइ उज्जमु विहि बलिउ चितंतहो लाहु मूलु गलिउ । मग्गियउ विहाणे मोल्लु नियउ मिच्छुत्तरु देवि ताउ थियउ। घत्ता--को तुहुँ मूढा कवणु घरु के लइयइँ भंड। भुल्लउ काइँ चवहि अलिउ तुहुँ वाहिउ भंड' ।।११।। १० १२ गाहा–वरिसाइँ सत्त धन्नंतिणनिमित्तेण तेण कुद्धेण । कुंभारेण सगाम दद्धं सिद्धं खलं पत्तं । गुण सयल वि लोहें जंति खउ जिउ अग्गि व हम्मइ लोहगउ । उच्चो वि निच्चकम्मइँ करइ लोहेण सुधम्मु वि परिहरइ । लोहेण न जाणइ अप्पपरु लोहेण अभक्खु वि खाइ नरु। ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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