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४३. २६. १२ ] कहकोसु
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२५ तहिँ ताहि तेण पत्थिववरेण
दुहियाहि विवाहु सयंवरेण । पारधु समोड्डिउ चंदवेहु
सो परिणइ सुय जो हणइ एहु । जे मिलिय असेस वि साणुराय
संजाया ते भग्गाणराय । तं विसमु न विधहुँ तरइ को वि थिय लज्जावस निव निहुय होवि । एत्थंतरि गुरुणा भद्दमित्तु
वुत्तउ लइ दावहि चाववित्तु । ५ ता तेण करेप्पिणु तं गुणाल
परिणिय नरवइसुय मेहमाल । भुजंतु भोय थिउ ताण सहिउ
बहुदिवसहिँ सयणहिँ लेहु पहिउ । पर ससुरु तासु आवहुँ न देइ
मन्नावइ परमायरु करेइ । घत्ता--संजोएँ सुहु देइ विहडतउ संतावइ ।
अइवल्लहु गुणवंतु जणु जंतउ कहो भावइ ।।२५॥ १०
एक्कहिँ दिणि एक्करहेण वीरु .. निग्गउ अकहंतु सकंतु धीरु । तहो पंथु निरुभिवि वणि सुवेउ
थिउ भिल्लाहिवइ कलत्तहेउ । कंपाविय ताविय भीरुकाय
अवरोप्परु हक्काहक्कि जाय । ते पउर पाव सो सुहडु एक्कु
वावरइ तो वि निम्मुक्कसंकु । जुभंतहो तहो सयलाउहाइँ
निट्टियइँ पयासियवणरुहाई।। पुणु लइउ करेण सबाणु चाउ
तहो सदें सत्तुहु कंपु जाउ । वयणेण घणावलि वल्लहासु
उयरेवि रहहो गय समुहु तासु । आसत्तु ताहे एयग्गदिट्ठि
जा जोयइ मुहु संजायतुट्ठि। ता छिद्दु लहेवि सरेहिँ तेण
अच्छीसु वियारिउ तक्खणेण । मुउ पावयम्मु निरु रउरवम्मि
संजायउ नारउ रउरवम्मि । घत्ता--इयरु वि समउँ पियाण घरु कुसलेण पहुत्तउ ।
सिरिचंदुज्जलकित्ति थिउ सुहाइँ भुंजंतउ ।।२६।। विविहरसविसाले णेयकोऊहलाले । ललियवयणमाले अत्थसंदोहसाले ॥ भुवणविदिदनामे सव्वदोसोवसामे। इह खलु कहकोसे सुंदरे दिन्नतोसे ॥
मुणिसरिचंदपउत्ते सुविचित्ते एत्थ जणमणाणंदे । तेयालीसमु संधी विसयनिसेहो इमो भणियो ।
.; ॥ संधि ४३ ॥
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