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________________ ४३६ ] सिरिक्तियउ [ ४३. २२. ८तहो गेहिणि पवर वसंतमाल सुहलक्खण अहमियंदभाल ।। एक्कहिँ दिणि नियभज्जाहिँ जुत्त गय उववणु कीलहुँ वाणिउत्त । घत्ता-तत्थ लयाहरे. पुप्फसेज्जही ते सुहुँ सुहयर। कीलिवि समउँ पियाहि वे वि निसन्ना सहयर ॥२२॥ २३ ता तहिँ वसंतमालाण चूयभत्तारु वुत्तु पावियपसंसु पाडेवि एह जणजणियचोज्ज तेणुत्तु कंति किं एवमेव भा भणइ निसन्नु जि करहि तेम ता लेवि चाउ किउ कण्णमोक्खु पाडिय मंजरि णिउणेण तेण तं निवि भद्दमित्तो वि ताण ता तं विन्नाणु अयाणमाणु अलि उत्तरु किंचि वि देवि ताहे मंजरि निएवि नवचारुरूय । हउँ करमि कंत कन्नावयंसु । महुँ देहि अंबमंजरि मणोज्ज। किं उट्ठिवि पाडमि भमरसेव । महु हत्थहो पावइ एह जेम। ५ पाडेवि फलाइँ लग्गंतपुंखु ।। परिप्रोसिय पण इणि बहुगुणेण । मग्गिउ सहारमंजरि पिया । लज्जिउ मणम्मि कुलकमलभाणु । थिउ वार वार मग्गंतियाहे । १० घत्ता-कड्डिवि बाहु कलाण वत्थुवहाणउ देप्पिणु।। गउ सिक्खहुँ धणुवेउ सा रोवंति मुएप्पिणु ।।२३।। मेहउरु पराइउ मेहसेणु - तहिँ नरवइ मग्गणकामधेणु । महएविहे मेहवईहे हूय तहो मेहमाल नामेण धूय । सीलेण गुणेण वि सा अउव्व रूवेण समागय सइँ रइ व्व । धणुवेयनामु धणुवेयजाणु अज्झाव उ तहिँ निवसइ पहाणु ।। तहो पासि देवदत्ताहे कंतु संठिउ धणु सिक्खइ विणयवंतु ।। आणेप्पिणु कुसुमइँ काणणाउ... कारावइ गुरु देवच्चणाउ । अवरु वि जं किंचि वि भणइ ताउ . तं सयलु वि करइ महाणुभाउ । तुट्ठउ गुरु विणउ निएवि तासु .. किवबहिणिहे कंतु व अज्जुणासु । घत्ता-चंदयवेहपहूइ धणुविन्नाणु पयासिउ । तेण वि सिक्खिवि सव्वु दोमइवरु वि विसेसिउ ॥२४॥ १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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