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४३. २२. ७ } कहको
[ ४३५ इय धम्मपवत्तणु जगपयासु
संताणकमेण वि पाउ तासु । ५ नंदीसरे पयणियपावबंध
हुय निवहाँ कयाइ अभक्खसद्ध । सूयारें तं अलहंतएण
गंपिणु मसाणे भयभंतएण । जोयंतें माणुसमांसु लधु
प्राणेवि संभाररसेण रधु । तं वट्टिउ भायणे लहेवि साउ
परिप्रोसिउ वगरक्खसु वराउ । पुच्छिउ सो इउ कहि कवणु मंसु जसु एरिसु रसु पावियपसंसु। १०
घत्ता-केम वि कहइ न जाम ता सो संक मुयाविउ ।
देप्पिणु अभयपदाणु भोयणकारु कहाविउ ।।२०।।
१
जामन्नु न पाविउ भुयणसेव
माणवपलु आणिउ एउ देव । ता पहुणा जीहिदियवसेण
भाणसिउ भणिउ चक्खियरसेण । अहो [अहुणा] लग्गेवि मुवि एउ मा चरु रंधिज्जसु मंसभेउ । पडिवज्जिवि इउ पाविवि पसाउ
सूयारे ता विरइउ उवाउ । अप्पाणहु नामु धरेवि ताउ
वीसासिउ पुरडिभयनिहाउ । ५ मेलावइ लड्डुय देइ खाहुँ
हक्कारण खेल्लहुँ एहुँ जाहुँ । पइसारइ राउलु छलु करेवि
एक्केक्कु निसुंभ तहिँ धरेवि । तहो पिसिएँ पीणइ पुहइपालु
वियलइ जामेण [कमेण] कालु । जाणिवि सव्वेहिँ मिलेवि पाउ
नीसारिउ किउ जुवराउ राउ । सूयारु असेप्पिणु गहणि तित्थु
पुणु भग्गउ पुरपयडियप्रणत्थु । १० घत्ता-साहारवि जणु भीउ वसुएवेण भिडंतउ । मारिउ पावें पाउ सत्तम महि संपत्तउ ॥२१॥
२२ फुडु एउ वियाणिवि जिणह जीह
जइ अस्थि निरामयसुहसमीह । प्रवर वि प्रायन्नह पावहिट्ठि
णिरु रमणीरूवासत्तदिट्ठि । तक्करु सुदेउ सरविद्धनेत्तु
वियणम्मि मुयउ गउ णरयखेत्तु । भद्दिलपुरि धणवइ अत्थि सेट्ठि
तहो घणसिरि घरिणी चउरदिट्ठि । तहि भद्दमित्तु संजाउ पुत्तु
विनाणकलागुणगणनिउत्तु । ५ किं वन्नमि रूवें चारुनेत्त
पिय तेण विवाहिय देवदत्त । तहो सहयरु वणिउ वसंतसेणु
गुणसुंदरु परमणहरणथेण । २२. १ 'वित्तु।
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