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________________ ४३२ ] सिरिचंदविरइयउ [ ४३. १३. ७जिह तिरिएण वि मज्जाय तेण न मणे वि हु भग्गिय उरयरेण । तिह साहुणा वि उत्तमकुलेण अहिमाणधणेण जसुज्जलेण । गुरु देउ करेप्पिणु सक्खि चत्त इंदिय कसाय संतवियसत्त । अरहंतुवएसिय सा पइज्ज मरणे वि मणोज्ज न भंजणिज्ज । १० घत्ता-करणकसायनिवित्ति जो सपइज्ज न भंजइ । अवसमेव सो साहु सिद्धिवहूमणु रंजइ ।।१३॥ सरजू प्र अउज्झहे गंधमित्त घाणिदियकयवसवत्तिवित्तु । अग्घाइवि विसकुमुमाइँ पत्त पंचत्त नरण गउ धम्मचत्तु । एत्थथि परज्जियसत्तुसेणु कोसलपुरे राणउ विजयसेणु । तो विन्नि रूवलक्खणनिउत्त विजयामहएविप्र जाय पुत्त । जयमित्तु दुइज्जउ गंधमित्तु एक्कहिँ दिर्ण राउ विरत्तचित्तु। ५ बंधेप्पिणु जेट्ठो रायपटु लहुयहो सुयासु जुवरायपटु । पणवेप्पिणु सायरसेणु दिक्ख लेप्पिणु अब्भसिय परत्तसिक्ख । कालंतरेण हा किउ अकज्जु जुबराएँ चप्पवि लइउ रज्जु । नीसारेवि घित्तु जयाइमित्तु सइँ रज्जि परिट्टिउ गंधमित्तु । घत्ता—णियपरिवारसमेउ दुम्मणु नयरासन्न । थिउ जाणवि जयमित्तु दुप्पएसि गिरिरन्न ।।१४।। १५ तहिँ अच्छइ निच्चु बिसन्नभाउ तहो छिद्दालोयणे कयपयत्तु एत्तहे तहिँ राणउ गंधमित्त पंचहिँ सएहिँ जुवइहिँ समेउ एक्कहिँ दिर्ण संतेउरु सहंतु तहिँ विविहपयारहि रमइ जाम एप्पिणु पाएप्पिणु उवरि सरिहे विसलित्तु विविहु परिभमिरभमरु मज्झेणावंतु वहंतु दिठ्ठ। पुणु पुणु सुंघंतहो विसु पइठ्ठ कि करमि हणमि किह दुट्ठभाउ । संपेसइ चर किं करइ सत्तु । विसएसु सुठ्ठ आसन्नचित्तु । दिणु रयणि रमइ णं कामएउ । जलकीलहे गउ सरजूसरंतु ।। इयरेण लहेप्पिणु सुद्धि ताम । वइरेण विणासणहेउ अरिहे । घित्तउ सुयंधसेलेंधनियरु । कोड्डेण लइउ मन्निवि मणिठ्ठ । घारिउ संजायउ विमयचे? । १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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