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________________ [ ४३३ • कहको घत्ता-गंधमित्तु पायालु गउ घाणहो पासत्तउ । सो सुहि इह परलोण जेण विसउ परिचत्तउ ।।१५।। सोस, पुरि पाडलिउत्तर चारुगत्त वेसा पसिद्ध गंधव्वदत्त । पंचालगीयसरसत्तचित्त पासायहो चुय पंचत्तु पत्त । पाडलिपुरि साहियसव्वसत्तु नरनाहु अत्थि गंधव्वदत्तु । तहो वेस वियक्खण चारुगत्त गुणिवण्णियगुण गंधव्वदत्त । सा सुंदरि सयलकलापवीण सद्देण नाइँ झसकेउवीण । गंधव्वें जो मइँ जिणइ कोइ सो णाहु कयावि न अन्नु होइ । कज्जेण एण अच्छइ कुमारि पयणियजुवाणजणविरहमारि। तहिँ सुणिवि पसिद्धि समुल्लसंति नाणापयार वर एंति जति । पर को वि न गयगामिणिहे ताहे पुज्जइ वाएण अणोवमाहे । निज्जिय गंधव्वगुणेण सव्व संजाय णिरुत्तर विगयगव्व । घत्ता---एत्तहे गंधव्वाइविज्जाविहवसमिद्धउ । पोयणपुरि पंचालु अत्थि सूरि सुपसिद्ध उ ।।१६।। १० तहो सीसहिँ जाणवि कहिय वत्त तेण वि तहिँ तक्खणि विहिय जत्त । आवेप्पिणु रंजियजणमणम्मि थिउ पुरबाहिरि नंदणवणम्मि । जइ नियहे कोइ उप्परिउ एंतु तो जाणावेज्जसु महु तुरंतु । सिक्खविवि एक्कु तहिँ सीसु पुत्तु पहसमिउ असोयहो मूले सुत्तु । सो कज्जे केण वि वियलु जाउ गय अवर पलोयहुँ पुरपहाउ । ५ एत्थंतरि प्रायन्नेवि वत्त सहुँ नियसहीहिँ गंधव्वदत्त । तंबोलविलेवणनिवसणाइँ कुसुमा विचित्तइँ भूसणारे । तहो कर्ज पुज्जजणियाणुराय गय गेहवि कतिफुरंतकाय । उदंतुरु लालालव मुयंतु घोरंतु पसारियमुहु सुयंतु । सहसत्ति दिठ्ठ सुललियभुयाण तामायउ पुच्छिउ चट्ट ताप। १० पहु सो पंचालु पसंसणिज्जु गंधव्वसूरि जणजणियचोज्जु । घत्ता--अत्थि पयासिउ तेण आयन्निवि दूमियमण । गय वइरायहीं बाल आलोइयभीमाणण ।।१७।। २८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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