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• कहको घत्ता-गंधमित्तु पायालु गउ घाणहो पासत्तउ ।
सो सुहि इह परलोण जेण विसउ परिचत्तउ ।।१५।।
सोस,
पुरि पाडलिउत्तर चारुगत्त
वेसा पसिद्ध गंधव्वदत्त । पंचालगीयसरसत्तचित्त
पासायहो चुय पंचत्तु पत्त । पाडलिपुरि साहियसव्वसत्तु
नरनाहु अत्थि गंधव्वदत्तु । तहो वेस वियक्खण चारुगत्त
गुणिवण्णियगुण गंधव्वदत्त । सा सुंदरि सयलकलापवीण
सद्देण नाइँ झसकेउवीण । गंधव्वें जो मइँ जिणइ कोइ
सो णाहु कयावि न अन्नु होइ । कज्जेण एण अच्छइ कुमारि
पयणियजुवाणजणविरहमारि। तहिँ सुणिवि पसिद्धि समुल्लसंति
नाणापयार वर एंति जति । पर को वि न गयगामिणिहे ताहे
पुज्जइ वाएण अणोवमाहे । निज्जिय गंधव्वगुणेण सव्व
संजाय णिरुत्तर विगयगव्व । घत्ता---एत्तहे गंधव्वाइविज्जाविहवसमिद्धउ ।
पोयणपुरि पंचालु अत्थि सूरि सुपसिद्ध उ ।।१६।।
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तहो सीसहिँ जाणवि कहिय वत्त
तेण वि तहिँ तक्खणि विहिय जत्त । आवेप्पिणु रंजियजणमणम्मि
थिउ पुरबाहिरि नंदणवणम्मि । जइ नियहे कोइ उप्परिउ एंतु
तो जाणावेज्जसु महु तुरंतु । सिक्खविवि एक्कु तहिँ सीसु पुत्तु
पहसमिउ असोयहो मूले सुत्तु । सो कज्जे केण वि वियलु जाउ
गय अवर पलोयहुँ पुरपहाउ । ५ एत्थंतरि प्रायन्नेवि वत्त
सहुँ नियसहीहिँ गंधव्वदत्त । तंबोलविलेवणनिवसणाइँ
कुसुमा विचित्तइँ भूसणारे । तहो कर्ज पुज्जजणियाणुराय
गय गेहवि कतिफुरंतकाय । उदंतुरु लालालव मुयंतु
घोरंतु पसारियमुहु सुयंतु । सहसत्ति दिठ्ठ सुललियभुयाण
तामायउ पुच्छिउ चट्ट ताप। १० पहु सो पंचालु पसंसणिज्जु
गंधव्वसूरि जणजणियचोज्जु । घत्ता--अत्थि पयासिउ तेण आयन्निवि दूमियमण ।
गय वइरायहीं बाल आलोइयभीमाणण ।।१७।। २८
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