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________________ ४२. २३. १३ ] एक पव गोउलि संकिण नेमित्तिउ पुच्छिउ हिउ तुहारउ वरि वियक्खणु ते पाय हवंति निरंतर महसूणु प्रमुणत महाइय सा बालें सोसिवि संताविय धाविउ सुयंतु नहि रिट्ठउ नहिँ वासरि पवलबलालें पायपहारें चूरिउ संदणु वसहु जुवाणें होंतर घोडउ कालु व नत्थिवि कालिउ रम्मइँ निवि वारिविट्ठिए पीडिउ जणु करमुट्ठि चाणूरु वियारिउ उग्गसेणु तहिँ रज्ज थवेप्पि रयणनिहाणवंतु परमेसरु कहकीसु Jain Education International ५ निमित्त हुय कंसहो राउलि । तेण वि तो भवियव्वु नियच्छिउ । वट्टइ नंदगोट्ठि सुहलक्खणु । जं जाणहि तं करहि नरेसर । घत्ता - तो चिरभव देवीउ तहिँ चितियमेत्तियाउ संपत्तउ । वृत्तउ मारह वइरि महु प्रच्छइ नंदगोट्ठि वंत ||२२|| १० २३ कंसाएसें पूयण धाइय । नट्ठ भएण महावइ पाविय । तोडिउ पेहुणु कहव पणट्ठउ । पुण जमलज्जुण मोडिय बालें । सं जणेहिँ जसो हे नंदणु । निन्नासिउ करेवि गलमोडउ । खुडियइँ कालिंदीदहपोमइँ । उच्चाइउ भुएहिँ गोवद्धणु । पुणु कंसासुरु संगरि मारिउ । पुणु दिहिँ जरसिंधु वहेप्पिणु । हुउ हरि भरहि श्रद्धचक्केसरु | घत्ता -- सिरिचंदुज्जलु तवु वि जण करिवि नियाणु वसिट्ठ विणट्ठउ । उग्गसेणसुउ कंसु हुउ हउ हरिणा गउ नर पइट्ठउ ||२३|| विविहरस विसाले णेयकोऊहलाले । ललियवयणमाले प्रत्थसंदोहसाले । भुवणविदिदनामे सव्वदोसोवसामे । इह खलु कहकोसे सुंदरे दिन्नतोसे ।। [ ४२५ मुणिसिरिचंदपउत्ते सुविचित्ते तपयदसंजुत्ते । कोहनियाणकहाए वायालीसो इमो संधी || || संधि ४२ ।। For Private & Personal Use Only ५ १० www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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