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________________ महावियम्मि मणोहिरामि दिउ सोमदेउ नामें पसिद्धु सिंगाररूव विहवें मरट्ट एक्aहिँ दियहम्मितिगुत्तिगुत्तु पक्खोववासि गोउरि पइट्ठ उट्ठेवि खडाविउ करिवि भत्ति गउ कत्थइ कज्जवसेण नाहु अप्पर मंडंती अंगणाउ कहिँ आय एम भणेवि पाव उ मुणि तक्खणि तहि तणउ देहु नीसारिय को विन करइ तत्ति Jain Education International संधि ४३ मेल्लह माणु प्रणत्थु दूसहदुक्ख निसेणिउ | लच्छीमइ माणेण पत्ताणेयकुजोणिउ ॥ परि घरि तत्थेव गामि विणु धन्नें विसहियभुक्खदुक्ख पुणु सुणही वे वाराउ जाय लाविस सा ललियभासि अंधलयगामि मच्छंधियासु दुग्गंधिणि दुव्वन्निणि दुरूव ass गंधहो निव्विन्नएहिँ तत्थच्छइ मुक्क कुडुंबएण एक्कहिँदि साहु समाहिगुत्तु १ बहुलच्छिसमिद्ध लच्छिगामि । निवसइ वियड्दु संपयसमिद्धु । तहो गेहिणि लच्छीमइ तरट्ट | मज्झत्थु महत्थु समाहिगुत्तु । रिसि सोमदेवविप्पेण दिट्ठ । मुणि भुंजावेज्जसु भणिविपत्ति । लच्छीमईवि पेच्छेवि साहु | उट्टिय न मणा विनियासणाउ । थिय महरिसि अक्कोसिवि सगाव | कोण डिउ जणणियनेहु | गय पइसिवि जलणि कयंतथत्ति । घत्ता — सत्थावत्थहो सव्वु करइ लोउ परमायरु । इकालिन कोइ सुहि भत्तारु न भारु ॥१॥ २ हु खरि पियगेहासन्नधामि । मुय हूई सूरि प्रसुइभक्ख । गय जमउरु वणदवदड्ढकाय । रेवाडि भरुयच्छहो सयासि । तिव्वमयहो मंडूकीपियासु । काणिय नामेणुप्पन्न भूव । कय कुट्टिय नेप्पणु थविय तेहिँ । उत्तारइ जणु कोट्टे वएण । विहरंतु पराइ नाणन्तु । For Private & Personal Use Only ५ १० १५ ५ www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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