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________________ ४२२] सिरिचंदविरइयउ [ ४२. १६. ३तेण पसाउ करेवि म गच्छह किकरकारनेण इहच्छह । ता तत्थेव तासु उवरोहें थिउ वसुएउ पयासियमोहें । देवइ नवमालइमालाभुय एक्कहिँ वासरि पुप्फवई हुय। ५ उच्छउ कंसें जणमणरोहउ विरइउ नामें पुप्फविरोहउ । मिलियउ महिलायणु गाइज्जइ वज्जइ बद्धावणउ नडिज्जइ । एत्थंतरि चरियहे पइसंतउ साहु निहालेविणु अइमुत्तउ । सहुँ वणियायणेण कीलावस पंथु निरुभिवि थिय जीवंजस । प्रावहि देवर रंजियजणवउ पेच्छहि नियससाहे पुप्फुच्छउ । १० एव भणतिर बहु खब्भालिउ रिसि रोसाणलेण पज्जालिउ । घत्ता-जो एयह रयसलहे सुउ होसइ जणमणनयणपियारउ । कि नच्चहि हलि तेण रण मारेवउ भत्तारु तुहारउ ॥१६॥ मुणिवयणेण एण मणु सल्लिउ पुहइह पडलु ताश नं घल्लिउ । रूसिवि वयणु पयंपिउ दारुणु पायहिँ मलिउ वत्थु कुसुमारुणु । पुणु रिसिणुत्तउ रज्जु लएवउ तुज्झु जणेरु वि तेण हणेवउ । आयनेप्पिणु एउ नियत्तिय गय जीवंजस गेहु रुयंतिय । कंसो कहिउ सो वि चिंतावरु गउ वसुएवपासि मग्गिउ वरु । मुणिणा दिठ्ठ णवर देवइयहे जो होसइ सुउ सुरगयगइयहे । सो महु वइरि तेण मारेवउ एत्थु न तुम्हइँ खेउ करेवउ । ता वसुएवं पुव्वविइन्नउ वरु उवरोहवसें पडिवन्नउ । गउ नियभवणु कंसु परिप्रोसिउ देवईए वल्लहु अक्कोसिउ । घत्ता-कवणु दुक्खु जह जइ न हुउ महु एक्कहे नंदणु गुणवंतउ। बहुयउ नरखेयरसुयउ बहुयउ अत्थि जासु बहुपुत्तउ ॥१७॥ १० १८ म. पुणु गब्भभरेण किलंतिण मेल्लि देव तवयरणहो गच्छमि जा तुह गइ सा मज्झु वि सुंदरि एम भणेप्पिणु पिय साहारिय सहुँ देवइम देवि अन्नु जि दिणि दुक्खु सहेवउ नवर वियंतिए । जेण न पुत्तहँ दुहु संपेच्छमि । कि पि म करहि विसाउ किसोयरि । वसुएवेण रुयंति निवारिय । पुच्छिउ तेण साहु तवदिणमणि। ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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