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________________ ४२. १६. २ ]. कहकोसु [ ४२१ घत्ता--ता वसुएवें कंसु रर्ण मोक्कल्लिउ तेण वि उट्ठद्धउ । जुज्झिवि चिरु निप्फंदु किउ झंप देवि पडिवक्खु निबद्धउ ॥१३॥ १४ प्राणिवि रायगेहु संखेवें अप्पिउ चक्कवइहे वसुएवें । तेण वि भणिउ जायसंतोसें लइ सुय समउ समीहियदेसें। भणइ अणंगु देव तिहुयणथुय जिउ रिउ एणायहरे ढोयहि सुय । ता पुहईसरेण सो पुच्छिउ को तुहँ कहाँ सुउ कहि कहिँ अच्छिउ । कहइ कंसु कल्लालि किसोयरि कोसंबिहिँ नामें मंजोयरि। अच्छए ताश कंसु हउँ जायउ सिरि वसुएवसीसु विक्खायउ । ता राएण पुरिस संपेसिय आगय सा लएवि मंजूसिय । पुच्छिउ कहिउ ताण जीवाविउ एहु एत्थ मइँ सामिय पाविउ । विप्पियगारएण संताविय बहुवाराउ एण दंडाविय । नीसारिउ निम्विन्नए गेहहो अह को करइ तत्ति दुम्मेहीं । १० घत्ता-ता मंजूस महीसरेण जोइय दिठ्ठ पत्तु लिहियक्खरु । नामंकिउ अंगुत्थलउ अवरु वि कंबलु रयणंचिउ वरु ।।१४।। १५ जाणिवि उग्गसेणसुउ दिन्नउ राएँ कन्नारयणु रवन्नउ । विहिउ विवाहु विसेसविराइउ मग्गहि देसु भणिउ जामाइउ । मग्गिय महुर तेण नियवंसें वेढिय महुर चउद्दिसु कंसें । उग्गसेणु संगामि धरेप्पिणु सहुँ पोमावईश बंधेप्पिणु । पवलिह कारागारि निरुत्तउ अप्पणु पुणु थिउ रज्जि सइत्तउ। ५ तायनिबंधणि दूमियचित्तउ कंसहु लहुउ भाइ अइमुत्तउ । पव्व इयउ जिणसमग पहाणउ हुउ अटुंगनिमित्तवियाणउ । ता सुहेण तहिँ रज्जु करतें कंसें किउ उवयारु सरतें। घत्ता-आणाविउ वसुएवगुरु पणवेप्पिणु सम्माणु करेप्पिणु । अब्भत्थिउ पडिवन्न सस देवय नामें परिणावेप्पिणु ।।१५॥ १० रज्जु विलासभोयसुहसारउ पइँ विणु सग्गेण वि किं किज्जइ सामिय एहु पसाउ तुहारउ । मझ मणहो उव्वेउ जि दिज्जइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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